स्थानीय निकाय चुनावों के लिए हल्द्वानी नगर निगम में भाजपा और कांग्रेस के लिए प्रत्याशी चुनना आसान नहीं था। भाजपा के लिए कयास लगाए जा रहे थे कि उसके पास मेयर पद के भले ही कई दावेदार हों लेकिन इन दावेदारों की संगठन के प्रति ‘प्रतिबद्धता’ चलते प्रत्याशी चयन में कोई कठिनाई नहीं आएगी जबकि कांग्रेस में दावेदारों की लम्बी कतार से उसे प्रत्याशी चयन में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। लेकिन जब चुनाव की घोषणा हुई तो हुआ इसका उलट। जिस तरह गजराज को भाजपा का टिकट मिला इससे उन्हें मुकद्दर का तो नहीं लेकिन सियासत का सिकंदर कहेंगे
तो अतिशयोक्ति नहीं होगी

हल्द्वानी में भाजपा को मेयर प्रत्याशी चुनने में काफी जद्दोजहद करनी पड़ी, वहीं कांग्रेस में प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया बिना विवाद के पूरी हो गई। शायद ये पहली बार था जब भाजपा के अंदर से ही नेताओं के बीच इतने अंतर्विरोध उभरे कि भाजपा नामांकन के खत्म होने की तारीख से पहली रात अपना प्रत्याशी घोषित कर पाई। हल्द्वानी मेयर प्रत्याशी चयन में ये बात फिर से साबित हो गई कि प्रदेश में भगत सिंह कोश्यारी का दबदबा अभी बरकरार है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सहित कई नेताओं के विरोध के बावजूद भगत सिंह कोश्यारी चट्टान की तरह गजराज सिंह बिष्ट के पीछे खड़े रहे। हल्द्वानी मेयर का प्रत्याशी चयन जिन विवादों को जन्म दे गया उससे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को ये जरूर समझ आया होगा कि जनाधार विहीन सलाहकार किसी की भी फजीहत करा सकते हैं और राजनीति के सफर में न ही कोई स्थाई मित्र होता है न ही स्थाई शत्रु। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राजनीति में शायद वो मुकाम अभी नहीं पाया है जिसमें वो एक लम्बी लकीर खींच सकें।

भगत सिंह कोश्यारी के खांटी शिष्य पुष्कर सिंह धामी को उनसे शायद बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। क्या हल्द्वानी मेयर की सीट को अति पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित करना किसी खास नेता को रोकने की कवायद का हिस्सा था? ऐसा करने की सलाह जिसने भी दी, क्या उसके चलते मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहीं राजनीतिक नुकसान तो नहीं हो गया? व्यापारी नेता नवीन चन्द्र वर्मा को एक बड़े विरोध के बावजूद जिस प्रकार भाजपा में शामिल कराया गया उससे इन कयासों को बल मिलता है कि मुख्यमंत्री के हल्द्वानी के कुछ सलाहकार, जिनमें एक दायित्वधारी भी शामिल है, इस सीट को ओबीसी करवा एक खास नेता को रोकना चाहते थे। लेकिन गजराज सिंह बिष्ट की ओबीसी सीट से दावेदारी ने इन सारे रणनीतिकारों की रणनीतियों को उलझाकर रख दिया। शायद ये पहली बार हुआ है कि ‘धाकड़ धामी’ की उपाधि से पुष्कर सिंह धामी को नवाजने वाले लोग ही धामी को दबाव में ले आए। इन दबावों का ही परिणाम था कि हल्द्वानी मेयर की सीट अनारक्षित करनी पड़ी। निश्चित तौर पर इस सीट को अनारक्षित करने का उद्देश्य गजराज सिंह बिष्ट का रास्ता आसान करना नहीं रहा होगा।

सूत्रों की मानें तो पूर्व कैबिनेट मंत्री और कालाढूंगी के विधायक बंशीधर भगत अपने शिष्य निवर्तमान मेयर डॉ. जोगेंद्र सिंह रौतेला के लिए तीसरी बार टिकट चाहते थे। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी की इस प्रकरण में एंट्री ने सारे समीकरण बदल कर रख दिए। भगत दा के एक दबाव ने सारे दबावों को जिस प्रकार निष्प्रभावी कर दिया उससे भाजपा के अंदर उनके कद का पता चलता है। भगत सिंह कोश्यारी के इन दबावों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और गजराज सिंह बिष्ट के वर्षों से बंद चल रहे संवाद को फिर से चालू करवाया। पुष्कर सिंह धामी और गजराज सिंह बिष्ट की बैठक इसी का नतीजा थी। भाजपा में भी नेताओं के अपने-अपने दावेदार थे। रेनू अधिकारी, महेंद्र अधिकारी पर किसी एक सांसद का हाथ था तो जोगेंद्र रौतेला पर बंशीधर भगत, प्रमोद तोलिया पर एक बड़े नेता की सिफारिश थी। सूत्र बताते हैं कि भगत सिंह कोश्यारी ने एक बार ओबीसी सीट घोषित करने के बाद उसे अनारक्षित करने पर गहरी नाराजगी जताई थी। खैर इतना होने के बावजूद भी भाजपा को हल्द्वानी मेयर चयन में कम माथा-पच्ची नहीं करनी पड़ी।

एक बड़े राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और मोदी कैबिनेट के एक महत्वपूर्ण केंद्रीय मंत्री के एक फोन ने समीकरणों को गड़बड़ा दिया। ये फोन हल्द्वानी मेयर के लिए ही किसी नेता के लिए बताया जाता है। आपसी संवाद के बाद भी पुष्कर सिंह धामी गजराज के पक्ष में अपना मन नहीं बना पा रहे थे जैसा कि सूत्र बताते हैं। वो अंत में प्रमोद तोलिया के पक्ष में नजर आ रहे थे लेकिन भगत सिंह कोश्यारी, भाजपा कैडर का दबाव साथ ही गजराज बिष्ट के 36 वर्षों के राजनीतिक करियर को वो नजरअंदाज नहीं कर पाए। दूसरी तरफ बंशीधर भगत इस बार कमजोर पड़ते दिखे। इस बार प्रत्याशी नहीं दोहराने की नीति ने निवर्तमान मेयर जोगेंद्र रौतेला को दौड़ से बाहर कर दिया। हालांकि अन्य बहुत से राजनीतिक समीकरण भी उनके पक्ष में इस बार नहीं थे। एक खास बात और है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नाम पर हल्द्वानी में राजनीतिक दुकान चलाने वालों के निशाने पर जोगेंद्र रौतेला और गजराज बिष्ट दोनों थे। दअरसल ओबीसी सीट घोषित करवा कर वे अपना वर्चस्व कायम करना चाहते थे जिसमें मेयर उनकी ही पसंद का हो।

नवीन वर्मा के साथ कभी व्यापारिक सहयोगी रहे मोहन गिरी गोस्वामी को भाजपा में शामिल मंडी परिषद के अध्यक्ष डॉ. अनिल डब्बू ने करवाया। फिलहाल गजराज बिष्ट को मेयर पद का प्रत्याशी बनाकर भाजपा ने एक पुराने कार्यकर्ता और भाजपा कैडकर की भावनाओं का सम्मान किया है। जहां तक कांग्रेस का प्रश्न है उसमें प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया इतनी सहज तरीके से निपट जाएगी किसी को विश्वास नहीं था। ललित जोशी की दावेदारी भले ही मजबूत थी लेकिन हल्द्वानी के विधायक सुमित हृदयेश की परिपक्वता ने कांग्रेस में प्रत्याशी चयन की राह आसान कर दी। उन्होंने शायद प्रभारी गोविंद सिंह कुंजवाल की भी राह आसान कर दी। हल्द्वानी में एक लम्बे समय बाद किसी मुद्दे पर कांग्रेस एक जुट नजर आई। सुमित हृदयेश ने पार्टी भीतर उठने वाले विरोध के स्वरों को आसानी से फिलहाल शांत कर दिया है। ऊपरी तौर पर कांग्रेस मेयर के चुनावों में एकजुट नजर आती है। पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष व सचिव रहे ललित जोशी के सामने सभी कांग्रेसियों को एकजुट रखने की चुनौती है।

हल्द्वानी मेयर का चुनाव इस दृष्टि से भी रोचक हो जाता है कि दशकों पहले भाजपा प्रत्याशी गजराज और कांग्रेस प्रत्याशी ललित जोशी एक-दूसरे के खिलाफ छात्र संघ का चुनाव लड़ चुके हैं। 1995 में एमबीपीजी कॉलेज हल्द्वानी में गजराज बिष्ट और ललित जोशी सचिव पद के लिए आमने- सामने थे। उस समय ललित जोशी ने बाजी मारी थी। 1995 के प्रतिद्वंदी रहे 2025 में फिर एक बार फिर से आमने-सामने हैं। 25 जनवरी 2025 के चुनाव परिणाम बताएंगे कि इस बार कौन बाजी मारता है।

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