आम चुनाव के नतीजों बाद एक बात जोर पकड़ने लगी है कि क्या दलितों का बीजेपी से मोहभंग हो गया है? खासकर उत्तर प्रदेश में चुनाव के नतीजे तो इसी तरफ इशारा करते हैं। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी ने शानदार प्रदर्शन कर राजनीति में जिसे नामुमकिन कहा जाता था उसे लगभग मुमकिन कर दिया है। जाटव वोटरों के एक हिस्से ने इस बार बसपा यानी हाथी छोड़ साइकिल की सवारी करना मुनासिब समझा। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि लोकसभा के लिहाज से सबसे अहम उत्तर प्रदेश में इतना बड़ा उलटफेर क्यों और कैसे हुआ? क्या प्रदेश में बीजेपी से दलितों का मोहभंग हो गया है? पार्टी सूत्रों का कहना है कि इसे जानने के लिए पार्टी के संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने पार्टी के दलित नेताओं के साथ बैठक कर इस पर मंथन किया है। बताया जा रहा है कि बीएल संतोष की इस बैठक में यूपी के सभी सात दलित मंत्री शामिल हुए। बैठक में सभी से ये सवाल किया गया कि आखिर चुनाव खराब क्यों हुआ? इसे लेकर सभी से दो सुझाव भी मांगे गए हैं। बैठक में सभी ने कहा कि सरकारी नौकरी के बदले प्रदेश में अधिकतर काम आउटसोर्सिंग से हो रहे हैं जिसमें आरक्षण का फार्मूला लागू नहीं होता है। पिछड़े और दलित समाज में इसका बहुत खराब संदेश गया है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने इस मुद्दे को आगे आम चुनाव में बढ़ाया जिससे पार्टी को नुकसान हुआ। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में कहा जाता है यादव और जाटव एक साथ वोट नहीं कर सकते, लेकिन इस बार के चुनाव में ऐसा हुआ है। प्रदेश में लोकसभा की 17 सीटें एससी समाज के लिए आरक्षित हैं। दस साल पहले सभी सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी। फिर साल 2019 के चुनाव में 17 में से बीजेपी के पास 14 सीटें रह गईं, लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के पास सिर्फ 8 सीटें रह गई हैं। मतलब एससी और एसटी के लिए रिजर्व 17 में से अब सिर्फ आठ सीटें बीजेपी के पास हैं। समाजवादी पार्टी के 8 सांसद इस कोटे से चुने गए हैं जबकि कांग्रेस को एक सीट मिली है।
दलितों का बीजेपी से हुआ मोहभंग
