विधानसभा का सदन कोई नुक्कड़ नहीं कि वहां बिना प्रमाणिकता के कोई भी बात कह दी जाए। सदन की गरिमा है और यदि यह बात कही है तो इसमें सत्यता होगी। इसलिए इसकी गंभीरता को समझना चाहिए। प्रदेश की जनता को यह जानने का अधिकार है कि आखिर सरकार गिराने की साजिश के पीछे कौन है? यह बात कहां से आई, और क्यों आई? लोकतंत्र के लिए इससे खतरनाक बात कोई और नहीं हो सकती है कि एक चुनी हुई सरकार को गिराने की साजिश हो रही है। इसका खुलासा होना चाहिए। चूंकि यह बयान सदन में दिया गया है तो विधानसभा अध्यक्ष को भी इसका संज्ञान लेना चाहिए।
पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का राजनीतिक अनुभव बेहद बड़ा है और उन्होंने जो सवाल इस मामले पर उठाए हैं, उसका वो शत फीसदी समर्थन करते हैं। उनका कहना था कि इतने गंभीर विषय पर ना तो किसी विधायक ने सदन के भीतर और ना ही सदन के बाहर खंडन किया है और ना ही स्थिति स्पष्ट की है। उनका कहना था कि सरकारी सदस्यों ने भी इस मामले पर कोई खंडन नहीं किया। हालांकि उन्होंने अपने बयान में ये भी कहा है जिस व्यक्ति ने यह सवाल सदन में उठाया, वो विश्वसनीय व्यक्ति नहीं है और ना ही उसे उत्तराखण्ड के सरोकारों से कुछ लेना-देना है, लेकिन यदि विधानसभा के भीतर कोई बात कही गई है तो वो विधानसभा की कार्यवाही में शामिल होती है। ऐसे में विधानसभा के भीतर उससे पूछा जाना चाहिए कि इसके क्या प्रमाण हैं?
कोई व्यक्ति कुछ भी कहे, उस पर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए, लेकिन मुख्यमंत्री ने इस पर
अपनी प्रतिक्रिया दी है। ऐसे में खुफिया एजेंसियां इसका संज्ञान लेंगी। मुख्यमंत्री के बयान के बाद यह मामला बेहद गंभीर हो जाता है। सरकार और बीजेपी को सामने आना चाहिए और बताना चाहिए कि आखिर माजरा क्या है? जब भाजपा सरकार गिराने के एक्सपर्ट्स को अपनी पार्टी में ले गई है तो आखिर वह कुछ तो अपने हुनर का कमाल दिखाएंगे।
उत्तराखण्ड के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों के उक्त बयानों से प्रदेश के वर्तमान हालातों को समझा जा सकता है। जिसमें धामी सरकार को अस्थिर करने को लेकर न केवल सनसनी मच गई है, बल्कि सियासत में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी शुरू हो गया है। यह पूरा मामला उस समय का है जब 24 अगस्त के दिन गैरसैंण मानसून सत्र के दौरान सदन के भीतर आखिरी दिन अनुपूरक बजट पास किया जाना था। उसी दिन कई विधेयक और अध्यादेश भी सदन में पारित किए जाने थे, लेकिन उससे पहले ही खानपुर से निर्दलीय विधायक उमेश कुमार ने धामी सरकार को गिराने का एक ऐसा गम्भीर बयान सदन के भीतर दे दिया जिससे प्रदेश की सियासत में भूचाल आ गया है।
पिछले कई महीनों से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भाजपा भीतर ही विरोधियों के निशाने पर हैं। कभी हाईकोर्ट नैनीताल के स्थानांतरण पर तो कभी केदारनाथ मंदिर के दिल्ली में शिलान्यास को सियासी मुद्दा बनाकर धामी को निशाने पर लिया जा रहा है। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा है कि मुख्यमंत्री धामी ने अपने विरोधियों को परास्त करने के लिए विधायक उमेश कुमार के जरिए अपनी ही सरकार की सुपारी वाली यह रणनीति तैयार की है। बजरिए उमेश कुमार भाजपा भीतर षड्यंत्र को दबाने के लिए मुख्यमंत्री धामी का यह सियासी शस्त्र करार दिया जा रहा है। विधायक उमेश कुमार और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के करीबी रिश्ते किसी से छुपे नहीं हैं।
कौन हैं उमेश कुमार
उमेश कुमार खानपुर के निर्दलीय विधायक हैं जो हर सरकार में अपनी गहरी पैठ रखने वालों में शुमार रहे हैं। वह ‘समाचार प्लस’ न्यज चैनल के सीईओ रहे हैं। इस दौरान उनके चैनल ने एक के बाद एक स्टिंग ऑपरेशन करके प्रदेश की राजनीति में भूचाल तक ला दिया था। कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के समय कई स्टिंग ऑपरेशन हुए जिसके चलते कांग्रेस में बड़ी तोड़-फोड़ हुई और प्रदेश में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगा। हालांकि कुछ माह के बाद सरकार की वापसी भी हुई लेकिन इस दौरान कई सनसनीखेज स्टिंग ऑपरेशन सामने आए जिसमें हरीश रावत और उमेश कुमार के बीच विधायकों की खरीद-फरोख्त का स्टिंग ऑपरेशन सबसे ज्यादा चर्चित रहा। इस स्टिंग ऑपरेशन पर सीबीआई जांच भी चल रही है। त्रिवेंद्र रावत सरकार के समय उमेश कुमार द्वारा कई खुलासे किए जिसमें त्रिवेंद्र रावत को निशाने पर लिया गया। इस मामले में उमेश कुमार के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया और उनको जेल भी जाना पड़ा। जबकि इससे पूर्व निशंक सरकार के समय में भी उमेश कुमार पर पुलिस कार्यवाही की गई और उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया।
इस पूरे मामले पर एक बार फिर वर्ष 2016 की यादें ताजा हो गई हैं। उस समय प्रदेश के सियासत में भूचाल आ गया था जब ठीक-ठाक चल रही हरीश रावत सरकार को रातोंरात गिराने का षड्यंत्र कर सूबे की अस्थिरता को खत्म करने के प्रयास किए गए थे। हालांकि बाद में हरीश रावत सरकार बामुश्किल बच तो गई लेकिन देवभूमि के दामन पर एक दाग जरूर लग गया। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत आज भी अपनी इस पीड़ा को नहीं भूले हैं और पिछले माह जब सदन में धामी सरकार को गिराने की बात कही गई तो एक बार फिर उनके जख्म हरे हो गए। उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी पीड़ा बयां करते हुए लिखा ‘साल 2016 में हमारी सरकार गिराने का खामियाजा सबको भुगतना पड़ रहा है। सरकार गिराने का प्रयास किया गया और कुछ बड़े लोग पार्टी से टूटकर चले गए। उनके इस कदम से अकेले हरीश रावत को नुकसान नहीं उठाना पड़ा, बल्कि इसका खामियाजा भाजपा और जनता को भी भुगतना पड़ा है। निर्दलीय विधायक उमेश कुमार के सदन में किए गए खुलासे के बाद एक बार फिर प्रदेश अस्थिरता के भंवरजाल में फंसता हुआ दिखाई दे रहा है। पूर्व में हरीश रावत सरकार को गिराने की कोशिशों में जहां राजनेता सीधे-सीधे शामिल थे वहीं इस बार षड्यंत्र के आरोपी गुप्ता बंधु बताए जा रहे हैं।
उमेश का गुप्ता बंधु पर वार, इस तरह जोड़े तार
24 मई 2024 को देहरादून स्थित पैसिफिक गोल्फ एस्टेट स्थित फ्लैट से कूदकर जान देने वाले नामी बिल्डर सतेंदर साहनी का नाम लेते हुए विधायक उमेश कुमार ने गुप्ता बंधु को इसकी वजह बताया। हालांकि आत्महत्या के इसी मामले में बिल्डर साहनी के सुसाइड नोट के आधार पर गुप्ता बंधु में से एक अजय गुप्ता और उनके बहनोई अनिल गुप्ता को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। इस मामले में कुछ समय बाद ही उन्हें जमानत भी मिल गई।
उक्त आत्महत्या प्रकरण को 500 करोड़ मामले में जोड़ते हुए उमेश कुमार ने कहा कि गुप्ता बंधु के भ्रष्टाचार के कारण जब उनके करीबी जैकब जुमा को वर्ष 2018 में दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति पद से हटा दिया गया था, तब गुप्ता बंधु (अतुल, राजेश और अजय गुप्ता) वहां से फरार हो गए थे। उस समय उत्तराखण्ड की तत्कालीन सरकार ने गुप्ता बंधु को न सिर्फ पनाह दी, बल्कि जेड श्रेणी की सुरक्षा भी प्रदान कर दी। हालांकि उत्तराखण्ड की सरकार में उनका होल्ड वर्ष 2016 से था। तब उन्हें वाई श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की गई थी।
उमेश कुमार ने कहा कि गुप्ता बंधु के साथ उत्तराखण्ड की तत्कालीन सरकार ने तब सांठ-गांठ बढ़ाई, जब उन्हें पकड़ने के लिए इंटरपोल ने रेड कॉर्नर जैसा अति संवेदनशील नोटिस जारी कर रखा था। उमेश कुमार ने यह भी कहा कि गुप्ता बंधु के साथ किन राजनेताओं के संबंध हैं, इसकी ईडी और सीबीआई से जांच कराई जानी चाहिए। इसी मांग के अनुरूप बिल्डर साहनी आत्महत्या के मामले में पुलिस के पास ऐसे साक्ष्य हाथ लगे हैं, जो इस ओर इशारा करते हैं कि हाउसिंग प्रोजेक्ट्स के बहाने दून में कालाधन खपाने की योजना थी। बाबा साहनी को इसी तरह के ट्रांजेक्शन पर एतराज था। जब बात नहीं बनी तो उन पर करीब 1000 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट को अन्य माध्यम से पूरा करने या कम्पनी छोड़ने का ऐसा दबाव बढ़ा कि जिसे झेलने की जगह उन्हें मौत आसान रास्ता नजर आया।
उमेश पर स्पीकर की मेहरबानी
उमेश की राजनीतिक ताकत निर्दलीय विधायक होने के बावजूद कितनी है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दो वर्ष पूर्व उनके खिलाफ दलबदल कानून के तहत शिकायत होने के बावजूद विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खण्डूड़ी ने कोई कार्यवाही तक नहीं की, न ही उक्त शिकायत को निरस्त किया गया है।
विधायक उमेश कुमार द्वारा उत्तराखण्ड जनता पार्टी का गठन किया गया जिसके वे केंद्रीय अध्यक्ष बने। जबकि उमेश कुमार निर्दलीय विधायक हैं और विधायक रहते किसी राजनीतिक पार्टी में न तो शामिल हो सकते हैं और न ही किसी पार्टी का गठन कर सकते हैं। इसके लिए पहले विधायकी से त्यागपत्र देना होता है। लेकिन उमेश कुमार ने न सिर्फ उत्तराखण्ड जनता पार्टी का विधिवत गठन किया, बल्कि केंद्रीय अध्यक्ष का पद भी ले लिया। भारतीय निर्वाचन कानून के तहत यह दलबदल कानून का मामला बनता है। रूड़की निवासी रविंद्र पनियाला द्वारा इस मामले के प्रमाण सहित विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खण्डूड़ी को शिकायत की गई और दलबदल कानून के तहत उमेश कुमार की विधानसभा सदस्यता को रद्द करने की मांग की गई।
दो वर्ष बीत जाने के बाद भी विधानसभा अध्यक्ष द्वारा इस मामले में कोई कार्यवाही नहीं की गई है। पूर्व में विधानससभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा निर्दलीय विधायक प्रीतम पंवार और रामसिंह कैड़ा को भाजपा में शामिल होने के चलते उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई थी। हरीश रावत सरकार में भी निर्दलीय विधायक हरीश चंद दुर्गापाल के मामले में ऐसा ही देखने को मिला था। तब दुर्गापाल कांग्रेस में शमिल होने वाले थे लेकिन निर्दलीय विधायकों के दलबदल नियम के चलते वे कांग्रेस में शामिल नहीं हो पाए। इससे यह साफ हो जाता है कि निर्दलीय विधायकों के किसी अन्य राजनीतिक दल में शामिल होना उनकी सदस्यता खत्म कर सकता है। जिसके तहत उमेश कुमार की भी सदस्यता खत्म हो सकती है लेकिन भाजपा सरकार और विधानसभा अध्यक्ष उन पर कार्यवाही न कर कई सियासी सवालों को जन्म दे रहे हैं।
गुप्ता बंधुओं को संरक्षण देने वाली भी भारतीय जनता पार्टी थी। उसके बच्चों की शादी में पूरा का पूरा औली उन्होंने उसे दे दिया था। उसे संरक्षण किसने दिया और अगर किसी विधायक ने सदन के अंदर ऐसी बात कही है तो उससे पूछना चाहिए कि आपके पास इस प्रकार की बात के लिए कोई पुख्ता सबूत है या नहीं। सरकार को इस विषय को गंभीरता से लेना चाहिए।
इस बात की संभावना दूर-दूर तक नहीं है कि सरकार को कोई गिरा सके। प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार है। हमारे विधायक पूरी तरह से संगठन और सरकार के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसलिए इस प्रकार की कोई बात है ही नहीं। वहीं जिसने भी कहा है कि 500 करोड रुपए में सरकार गिराने का सौदा हुआ था और वह भी सदन के अंदर कहा है तो इसकी जांच होनी चाहिए।