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जेएनयू प्रशासन का यह कदम भड़का सकता है हंगामा

दिल्ली का जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रों के प्रदर्शनों को लेकर अक्सर विवादों में रहता है। इस बीच जेएनयू प्रशासन के एक तुगलकी फरमान के विरोध में छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। जेएनयू प्रशासन के नए नियमों के तहत प्रशासन ने कैंपस में धरना प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया है। जिसका उल्लंघन करने वालों पर 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा।

 

आदेश के अनुसार अगर कोई छात्र किसी शैक्षणिक और प्रशासनिक परिसर के 100 मीटर के दायरे में भूख हड़ताल, धरना या किसी अन्य तरह के विरोध-प्रदर्शन में शामिल पाया जाता है, तो उस पर या तो जुर्माना लगाया जाएगा, या उसे 2 महीने के लिए छात्रावास या परिसर से बाहर कर दिया जाएगा ।

इसके अलावा देश विरोधी नारों का आरोपी पाय जाने वालों पर 10 हजार रुपये और बिना इजाजत के पार्टी करने वालों पर 6 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। इतना ही नहीं आरोपी छात्रों तक का एडमिशन भी रद्द किया जा सकता है। प्रशासन का यह आदेश अक्टूबर 2023 में जेएनयू के स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज की बिल्डिंग पर राष्ट्र-विरोधी नारे लिखे जाने के बाद आया है। जिसके विरोध में छात्रों में नाराजगी जाहिर करते हुए छात्रों ने प्रदर्शन की शुरुआत की जिसमें जेएनयू प्रशासन के इस आदेश को एक तुगलकी फरमान बताया जा रहा है।

 

क्या है जेएनयू प्रशासन का आदेश

 

जेएनयू प्रशासन के इस आदेश का एक ओर जहाँ छात्र लगातार विरोध कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ प्रशासन इस आदेश को वापस लेने के लिए तैयार नहीं हो रहा है। प्रशासन का कहना है कि केंद्र सरकार के पास सिर्फ जेएनयू ही नहीं है और भी विश्वविद्यालय हैं। जिसके नियमों के अनुसार प्रदर्शन भी होना चाहिए तो एकेडमिक के लिए होना चाहिए और ये नियम पिछले 10 सालों से है।

जिसपर प्रशासन का कहना है कि प्रदर्शनों को प्रतिबंधित किये जाने का ये कोई नया नियम नहीं है बल्कि पुराने आदेश को ही ठीक करके फिर से लागू किया गया है। जेएनयू प्रशासन के कुलपति शांति श्री पंडित ने पुरानी घटनाओं को याद दिलाते हुए यह भी कहा है कि एक साल पहले एक जन्मदिन की पार्टी में बहुत हिंसा हुई, जिसमें 10 छात्रों को निष्कासित भी किया गया था ।

इसी साल के मार्च में ये नियम पहले भी लागू किया गया था लेकिन छात्रों के हंगामे के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन को नियम वापस लेना पड़ा था। इन सभी बातों के बीच इस आदेश को लेकर ये सवाल भी उठ रहे हैं कि जेएनयू में नियम तो सख्त हो गया, लेकिन इसके कारण जो छात्र अपने हितों के लिए समय-समय पर विश्वविद्यालय में प्रदर्शन कर अपनी मांग उठाते थे, उनका क्या होगा? क्योंकि इसका विरोध कर रहे छात्रों का कहना है कि यह “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” पर भी प्रतिबंध लगाने जैसा है।

जेएनयू

दरअसल वामपंथ का गढ़ कहे जाने वाले जेएनयू में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का मुद्दा हो या फिर अफजल गुरु को फाँसी दिए जाने का यहाँ ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ’ के नाम पर छात्र विरोध-प्रदर्शन पर उतर आते हैं। अफजल की फाँसी के खिलाफ किये गए प्रदर्शन इस हद तक बढ़ गए थे कि जेएनयू के खिलाफ सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा काफी अधिक भड़क उठा था। यह कोई पहला ऐसा मुद्दा नहीं था जिसके कारण लोगों ने जेएनयू का विरोध किया इससे पहले और बाद में भी विश्विद्यालय के छात्रों ने कई ऐसे प्रदर्शन किये जिसके कारण जेएनयू अक्सर विवादों में रहता है।

 

कब-कब विवादों में रहा जेएनयू

 

देश के पहले प्रधानमंत्री के नाम पर बना “जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय” हमेशा से ही विवादों में रहा है। ये कहना भी गलत नहीं होगा कि जेएनयू का विवादों से अटूट रिश्ता है। पिछले कई सालों में यहां बड़े विवाद सामने आए हैं। कभी यहां के छात्र तो कभी यहां के कुलपति सुर्खियां बने हैं।

1980 विवाद : साल 1980 में भी ऐसा ही एक मामला सामने आया जब इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं। इस वर्ष के नवंबर महीने में जेएनयू के वामपंथी संगठन और दक्षिणपंथी छात्रों के बीच किसी बात को लेकर विवाद शुरू हो गया। धीरे – धीरे ये विवाद इतना बढ़ गया कि 16 नवंबर 1980 से लेकर 3 जनवरी 1981 तक विश्वविद्यालय को बंद करना पड़ा था। इसके अलावा विवाद बढ़ने से रोकने और बिगड़ते हालात पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए जेएनयू स्टूडेंट यूनियन (जेएनयूएसयू) के प्रमुख राजन जी को हिरासत में लेना पड़ा था।

2000 विवाद : साल 2000 में जेएनयू में एक मुशायरे का आयोजन हुआ कहाँ पाकिस्तान के समर्थन में मुशायरे किये गए। जिस समय यह कार्यक्रम चल रहा था तब वहां सेना के 2 जवान भी मौजूद थे जिन्होंने पकिस्तान के समर्थन में पढ़ी जा रही गजलों का विरोध किया। जिसके प्रतिक्रिया में मुशायरे का आयोजन करने वाले छात्र संगठन के नेताओं ने दोनों जवानों पर हमला कर दिया और उन्हें बुरी तरह से पीट दिया। तब ये मामला भाजपा सांसद बीसी खंडूरी ने संसद में भी उठाया था।

2005 विवाद : साल 2005 में भी जेएनयू में बड़ा विवाद खड़ा हुआ जब ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु ऊर्जा को लेकर विवाद चल रहा था। जिसके बाद अन्तर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण ने दोनों देशो के बीच मतदान कराये । जिसमें भारत अमेरिका के पक्ष में था क्योंकि वह उस समय अमेरिका से रिश्ते सुधारना चाहता था। इसलिये भारत ने ईरान को प्रतिबंधित करने का समर्थन किया। लेकिन जेएनयू के छात्र संगठनों को भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का ये फैसला पसंद नहीं आया। उनका अनुसार भारत को ईरान का समर्थन करना चाहिए था।

इस दौरान जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पंडित जवाहर लाल नेहरू की प्रतिमा का उद्घाटन करने जेएनयू पहुंचे तो जेएनयू के छात्रों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी। और उनका स्वागत काले झंडे दिखाकर किया।

 

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2010 विवाद : साल 2010 में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सली हमला हुआ था जिसमे सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए थे। जिस पर पुरे देश ने शोक व्यक्त किया था। लेकिन रिपोर्ट्स के अनुसार वामपंथी संगठन डेमोक्रेटिक स्टूडेंट यूनियन और ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से मुठभेड़ में शहीद 76 जवानो को मौत का जश्न मनाया था। कांग्रेस के छात्र संगठन ने यह भी दावा किया कि इस दौरान विद्यार्थी भारत विरोधी नारे लगा रहे थे।

2014 विवाद : इसी तरह अक्टूबर 2014 में जेएनयू कैंपस में महिषासुर बलिदान दिवस मनाने पर खूब बवाल मचा। जिसमें ‘ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम’ ने दुर्गा पूजा के दौरान एक कार्यक्रम आयोजित किया जिसका नाम था महिषासुर शहादत दिवस रखा। इस आयोजन के विषय में संगठन के छात्रों का कहना था कि दुर्गा पूजा की कहानी गलत बताई जाती है, कि दुर्गा माता ने एक राक्षस (महिषासुर) का वध किया था लेकिन ऐसा नहीं है।

ये कहानी भगवान और राक्षसों के बीच की नहीं बल्कि आर्यन और नॉन आर्यन की है। जिसमे महिषासुर एक आदिवासी दलित था जिसे आर्यों ने मार डाला । इसमें एक प्रोफेसर ने भी स्टूडेंट का समर्थन किया था और इस मुद्दे पर एक लम्बा भाषण दिया था।

2016 विवाद : 9 फरवरी 2016 को जेएनयू इतिहास के सबसे बड़े विवाद का जन्म हुआ । इस दिन जेएनयू के 10 छात्रों ने एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया। जिसमे उमर खालिद भी शामिल थे। यह कार्यक्रम 2001 में संसद हमले के आरोपी अफजल गुरु और मकबूल भट्ट को मिली सजा के मुद्दे पर चर्चा के लिए आयोजित किया गया था। अफजल गुरु के समर्थन में छात्रों का कहना था कि अफजल को मिली सजा एक न्यायिक अपराध था क्यूंकि उसके खिलाफ कोई भी पुख्ता सबूत नहीं मिले थे। अफजल गुरु को मिली सजा एक राष्ट्रीय मुद्दा था इसलिए ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ ने इसे रद्द करने की मांग की।लेकिन इसके बावजूद यह कार्यक्रम जारी रहा।

कार्यक्रम न रोके जाने के कारण अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने इसे अनैतिक बताते हुए इसका विरोध किया जिससे दोनों दलों में विवाद छिड़ गया। रिपोर्ट्स के अनुसार इस विवाद में देश विरोधी नारे भी लगाए गए।  विवाद इतना बढ़ गया कि बीच बचाव के लिए पुलिस को बुलाना पड़ा। 12 फरवरी को दिल्ली पुलिस ने विश्वविद्यालय के प्रेजिडेंट कन्हैया कुमार को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया । दिल्ली पुलिस ने कन्हैया कुमार सहित उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य समेत कुल 10 लोगों को इस मामले में आरोपी पाया।

2019 विवाद : साल 2019 में भी विश्वविद्यालय छात्रों ने जेएनयू प्रशासन के खिलाफ आवाज उठाते हुए फीस बढ़ोत्तरी को आवाज उठाई। जिसके बाद जेएनयू में कोहराम मच गया था। इस प्रदर्शन के दौरान छात्रों ने संसद तक पैदल मार्च निकाला। इस दौरान छात्रों और पुलिस के बीच हिंसक झड़प हुई। रिपोर्ट्स के अनुसार छात्रों ने पुलिस पर भी पथराव किये ।

2020 विवाद : 5 जनवरी 2020 की शाम के लगभग 7 बजे 10 से 12 लोग मुँह पर मास्क लगाकर हाथ में रॉड ,ईंटे और स्टिक लिए जेएनयू के हॉस्टल में दाखिल हुए और छात्रों पर हमला कर दिया। यह हमला लगभग 3 घंटे तक चला और इसमें करीब 39 विद्यार्थी सहित अध्यापक जख्मी हो गए। जब हमले के बाद एम्बुलेंस हॉस्टल पहुंची तो स्टूडेंट ने उसमे बैठने से इंकार कर दिया। उनका कहना था कि उनको मदद की कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि जब उन पर हमला हो रहा था तब पुलिस गेट के बाहर से ही तमासा देख रही थी और पुलिस ने छात्रों की कोई मदद नहीं की।

 

क्यों होता है जेएनयू में विवाद

 

 

जेएनयू में विवादों का सबसे बड़ा कारण यहाँ का प्रशासन है जिनकी वजह से ऐसे विवादास्पद कार्यक्रम विश्विद्यालय में आयोजित किये जाते हैं। इसके अलावा इन विवादों में राजनितिक दलों का भी हस्तक्षेप माना जाता है रिपोर्ट्स के मुतबिक इन छात्रों को राजनितिक दलों का पूरा सहयोग मिलता है। जो इन मामले को ठंडा करने के स्थान पर और गर्मा देते है और उस पर अपनी चुनावी रोटियां सेंकते हैं।कई बार इसमें राजनीतिक दलों के अलावा बाहरी संगठन भी शामिल होते हैं। साथ ही जेएनयू सुरक्षा व्यवस्था भी कमजोर मणि जाती है जिसकी वजह से यहाँ बाहर से आने वाले संगठनों या दलों के अंदर प्रवेश मिल जाता है।

 

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