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लोवर कोर्ट के जजों पर गिरी गाज , तीन बिहार के जज हुए बर्खास्त तो उत्तराखण्ड में एक जज सस्पेंड

पिछले महीने संपन्न हुए बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए  गठबंधन ने 125 सीटों पर जीत दर्ज कर वादे के मुताबिक नीतीश कुमार को एक बार फिर से राज्य  की कमान सौंपी  । फिर से सत्ता पर काबिज होने बाद नीतीश सरकार एक्शन में दिख रही है।  सरकार ने इस बीच बड़ी कार्यवाही  कर निचली अदालत के तीन न्यायाधीशों को अनुचित आचरण के लिए सेवा से बर्खास्त कर दिया है। यह तीनों न्यायाधीश जनवरी 2013 में नेपाल के काठमांडू में होटल के कमरे में एक महिला के साथ पकड़े गए थे। इसी घटना को लेकर तीनों न्यायाधीशों को बिहार सरकार ने सेवा से बर्खास्त कर दिया है। वहीं ऐसा ही एक मामला उत्तराखंड से भी सामने आया है।

उत्तराखण्ड के उच्च न्यायालय ने कल 22 दिसंबर  को देहरादून के जिला जज प्रशांत जोशी को निलंबित कर दिया। उनके खिलाफ लोक सेवक आचरण नियमावली के विरूद्ध कार्य करने के आरोप में अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गई थी । उन पर  आरोप था कि उन्होंने अपने आधिकारिक दायित्वों का निर्वाह करने के लिए अपने एक परिचित के निजी वाहन का उपयोग किया । कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रवि कुमार मलीमथ की सिफारिश पर  उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार ने जोशी को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने के आदेश जारी कर दिए । आदेश में कहा गया है कि अग्रिम आदेश तक वह जिला जज रूद्रप्रयाग मुख्यालय से संबंद्ध रहेंगे और उच्च न्यायालय की अनुमति के बिना वहां से कहीं नहीं जा सकेंगे।

जिन न्यायाधीशों को बिहार सरकार ने बर्खास्त किया है उसमें समस्तीपुर के फैमिली कोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश हरी निवास गुप्ता, अररिया के चीफ ज्यूडिशल मजिस्ट्रेट कोमल राम और अररिया के तदर्थ तत्कालीन अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश जितेंद्र नाथ सिंह शामिल हैं।

इन तीनों की सेवा से बर्खास्तगी फरवरी  2014 से लागू होगी जब राज्य सरकार ने पहली बार पटना हाई कोर्ट की अनुशंसा पर बिना अनुशासनात्मक जांच के सेवा से बर्खास्त किया था।  राज्य सरकार द्वारा जारी नोटिफिकेशन में साफ किया गया है कि तीनों न्यायाधीशों को सेवा से बर्खास्त करने के बाद सभी किसी भी प्रकार की सुविधा के हकदार नहीं होंगे।

यह मामला प्रकाश में तब आया जब जनवरी  2013 को तीनों न्यायाधीश काठमांडू के एक होटल में महिला के साथ पकड़े गए थे।  उस समय  पटना हाई कोर्ट ने इस पूरे मामले का स्वत: संज्ञान लिया था और जांच के निर्देश दिए थे।  इसमें तीनों दोषी पाए गए थे।  जांच के बाद फरवरी  2014 को हाई कोर्ट ने बिहार सरकार को अनुशंसा की थी कि तीनों न्यायाधीशों को सेवा से बर्खास्त किया जाए।

उस वक्त तीनों न्यायाधीशों ने सेवा से बर्खास्तगी के फैसले को चुनौती दी थी और आरोप लगाया था कि उनके खिलाफ बिना किसी प्रकार की जांच के ही सेवा से बर्खास्तगी की गई थी। इसके बाद पटना हाई कोर्ट ने पांच  जजों की एक समिति बनाकर फिर से इन तीन न्यायाधीशों को बर्खास्त करने का आदेश जारी किया।

इस फैसले को तीनों न्यायाधीशों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी और उस समय हाई कोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी।  नवंबर  2019 को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के अपने फैसले को वापस लिया जिसके बाद बिहार सरकार ने अब  इन तीनों को सेवा से बर्खास्त करने के लिए अधिसूचना जारी कर दी  है।

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