खासतौर से यूपी में छठे चरण का चुनाव बेहद रोचक स्थिति में है। बडे़-बडे़ दिग्गजों के भाग्य फैसला यहां की जनता करेगी। हालांकि अब प्रत्याशी को जांच-परखकर वोट नहीं दिए जाते, अब तो वोट पार्टी और जाति-धर्म के आधार पर दिए जाते हैं। यूपी में इस प्रथा का चलन अपने चरम पर है और शायद यही वह वजह है जिसने यूपी की राजनीति को सिर्फ और सिर्फ धर्म के आधार पर ही तय कर रखा है।
छठे चरण में प्रदेश की 14 सीटों के लिए मतदान होना है। चुनाव प्रचार एक दिन पहले ही थम चुका है। प्रत्याशी सोशल मीडिया जैसी आधुनिक पद्धति के साथ ही पुरानी पद्धति का अनुसरण करते हुए घर-घर वोट की अपील कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के जनपद सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, फूलपुर, इलाहाबाद, अम्बेडकरनगर, श्रावस्ती, डुमरियागंज, बस्ती, सन्त कबीर नगर, लालगंज, आजमगढ़, जौनपुर, मछलीशहर और भदोही लोकसभा क्षेत्रों में मतदान होना है। इस चरण में 2.53 करोड़ से अधिक मतदाता 174 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे। प्राप्त जानकारी के अनुसार सुल्तानपुर में 15 प्रत्याशी मैदान में हैं तो दूसरी ओर प्रतापगढ़ में 08, फूलपुर में 14, इलाहाबाद 14, अम्बेडकर नगर में 11, श्रावस्ती में 10, डुमरियागंज में 07, बस्ती में 11, संतकबीर नगर में 07, लालगंज में 15, आजमगढ़ में 15, जौनपुर में 20, मछलीशहर में 15 तथा भदोही में 12 प्रत्याशी चुनाव मैदान में अपना भाग्य आजमा रहे हैं। इनमें से लगभग दर्जन भर सीटों पर किसी समय सपा का कब्जा माना जाता था लेकिन विगत लोकसभा चुनाव में मोदी की आंधी में सारा कुछ पत्ते की तरह हवा में उड़ गया। इस बार सपा ने बसपा संग गठबन्धन करके भाजपा को चुनौती पेश की है। गठबन्धन की चुनौती को भले किसी और राज्य में महत्व न मिले लेकिन यूपी में यह गठबन्धन अपना चमत्कार दिखाने में सक्षम है। यदि सपा-बसपा कार्यकर्ताओं ने आपसी विद्वेष भुलाकर खुले मन से एक-दूसरे प्रत्याशी के समर्थन में जोर लगाया तो निश्चित तौर से छठे चरण की 14 लोकसभा सीटों में 8 से 10 सीटों पर गठबन्धन की चुनौती भाजपा के लिए भारी पड़ जायेगी। वैसे भी अब विगत लोकसभा चुनाव जैसा परिदृश्य कहीं नजर नहीं आता। अब न तो हर-हर मोदी, घर-घर मोदी जैसे नारों की गूंज कहीं सुनायी दे रही है और न ही मन्दिर आन्दोलन को लेकर भाजपा नेताओं की गर्जना। यूपी में भाजपा के प्रति वोटरों की मनःस्थिति की बात करें तो पिछले चुनाव में भाजपा की जीत सिर्फ और सिर्फ राम मन्दिर निर्माण के संकल्प और कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के मुद्दे के साथ ही महंगाई के स्तर को नीचे लाने के वायदे पर तय हुई थी। पांच वर्ष के सफर में भाजपा सरकार इन अहम मुद्दों के पास तक नहीं फटक सकी है। हालांकि पुलवामा हमले के बाद बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक ने काफी हद तक हवा का रुख भाजपा के पक्ष में कर दिया था लेकिन भाजपा विरोधी दलों के प्रयास से इन दोनों महत्वपूर्ण घटनाओं में भाजपा को बैकफुट पर आना पड़ा है।
छठे चरण का चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस चरण में सपा प्रमुख अखिलेश यादव के भाग्य का फैसला होना है। हालांकि भाजपा प्रत्याशी निरहुआ के मुकाबले अखिलेश यादव की स्थिति काफी मजबूत है और कहा जा रहा है कि श्री यादव आजमगढ़ से रिकाॅर्ड मतों से विजयी होंगे। ऐसा इसलिए कि इस बार बसपा प्रमुख मायावती भी एक रैली में अखिलेश यादव को रिकाॅर्ड मतों से विजय बनाने की अपील दलित समुदाय से कर चुकी हैं। यदि मौजूदा समय को ध्यान में रखकर कुछ कहा जाए तो बसपा और सपा प्रमुखों के बीच दोस्ती का ऐसा माहौल है जैसा शोले में जय-वीरू के साथ दिखाया गया था। यानी हर कीमत पर एक-दूसरे के प्रत्याशी को जीत दिलाने का लक्ष्य। ज्ञात हो भाजपा की तरफ से उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ ही कई बडे़ नेता छठे चरण के मतदान में पूरी ताकत झांेक चुके हैं तो दूसरी ओर सपा-बसपा गठबंधन से सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती की संयुक्त रैलियां काफी चर्चा में रही हैं। दूसरी ओर कांग्रेस दौड़ में बनी हुई है। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका वाड्रा ने सुल्तानपुर में रोड शो तो किया ही है साथ विगत एक महीने से लगातार इन सीटों पर नुक्कड़ सभाएं और वाहन रैलियां आयोजित की जा रही हैं। कल यह क्रम थम गया लेकिन घर-घर जाकर वोटरों को लुभाने का क्रम अभी भी जारी है। कांग्रेस का सुल्तानपुर में जान फूंक देने का मुख्य कारण यह भी है कि इस बार सुल्तानपुर से भाजपा ने अपनी केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी को मैदान में उतारा है और उनका मुकाबला कांग्रेस के दिग्गज नेता संजय सिंह से है तो दूसरी ओर बसपा के टिकट पर चंद्रभद्र सिंह मैदान में है। चन्द्रभद्र सिंह की इलाके में व्यक्तिगत पहचान की बात करें तो उनकी पहचान मात्र माफिया से अधिक नहीं है लेकिन बसपा का बैनर उन्हें काफी हद तक मजबूती प्रदान कर रहा है। हालांकि चन्द्रभद्र सिंह की जीत अधर में है लेकिन वे वोट कटवा की स्थिति में भाजपा के समक्ष मुश्किलें पैदा कर सकते हैं। रही बात कांग्रेस के संजय सिंह की तो संजय सिंह का पहचान कद्दावर नेता के रूप में होती आयी है। यदि भाजपा से मतदाता रूठा तो निश्चित तौर पर संजय सिंह की सीट पक्की है।
छठे चरण में फूलपुर सीट भी कम रोचक नहीं है। हालांकि केशव मौर्या की यह सीट उप चुनाव में भाजपा की झोली से छिटक चुकी थी और सपा-बसपा गठबन्धन ने इस पर अपना कब्जा जमा लिया था। इस बार सपा की तरफ से पंधारी यादव मैदान में हैं। यह सीट भाजपा के लिए जितनी अहम है उतनी ही सपा के लिए भी। इस सीट पर सूबे के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या की इज्जत दांव पर है तो वहीं दूसरी ओर सपा के लिए भी इस सीट को बचाना जरूरी हो जाता है। फूलपुर से भाजपा ने केसरीदेवी पटेल को उम्मीदवार बनाया है जबकि कांग्रेस ने सोनेलाल पटेल के बड़े दामाद पंकज सिंह निरंजन को मैदान में उतारा है। एक समय यह सीट बाहुबली माफिया अतीक अहमद के प्रभाव वाली सीट मानी जाती रही है। हालांकि इस बार अतीक ने काफी कोशिशें कर डाली लेकिन किसी भी दल ने उन्हें घास नहीं डाली। राजनीति पर कलम चलाने वाले वरिष्ठ पत्रकार मानते हैं कि यह सीट एक बार फिर से सपा के कब्जे में ही रहने वाली है। क्योंकि न तो भाजपा की केसरीदेवी का कोई खास वजूद इस सीट पर है और न ही कांग्रेस की तरफ से मैदान में उतारे गए सोनेलाल पटेल के दामाद पंकज सिंह का। जाहिर है यहां पर वोट पार्टी के आधार पर ही पडेंगे और इस मामले में यूपी में सपा-बसपा गठबन्धन यदि बाजी मार ले जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
डुमरियागंज सीट पर भाजपा के जगदम्बिका पाल की स्थिति बसपा के आफताब आलम से काफी मजबूत मानी जा रही है। हालांकि इस बार का माहौल विगत चुनाव जैसा नहीं है लिहाजा जगदम्बिका पाल को अपनी जीत दर्ज करने के लिए नाको चने चबाने पडेंगे।
कुल मिलाकर देखा जाए तो छठे चरण का चुनाव भी काफी महत्वपूर्ण है। 14 सीटों में से 8 सीटें ऐसी हैं जिन पर दावे के साथ कहा जा सकता है कि इस बार इन सीटों पर जीत हासिल करना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। मतदाता बेहद नाराज है और फायदा सपा-बसपा गठबन्धन को मिलता स्पष्ट नजर आ रहा है।

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