पुरानी पेंशन योजना बहाल करने को लेकर एक ओर जहाँ आये दें सरकारी कर्मचारियों द्वारा बहसें व रैलियां आयोजित की जा रही हैं, तो वहीं दूसरी ओर अब राजनीतिक पार्टियां भी इसे चुनावी मुद्दा बना रहीं हैं। जिसपर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) राजनितिक दलों को नसीहत देते हुए कहा है कि वह पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस )को फिर बहाल करने के विषय में बिल्कुल न सोचें। क्योंकि इसकी वजह से उनका खर्च कई गुना बढ़ जाएगा।
आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में ‘न्यू पेंशन योजना’ की जगह पुरानी पेंशन योजना लागू किये जाने के वादों को लेकर चिंता जताई है। आरबीआई के अनुसार राज्य सरकारों को नसीहत दी कि जनता को लुभाने वाले वादों के कारण उनकी वित्तीय स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। सरकारी खजाने के लिए ओपीएस बहुत नुकसानदेह साबित होगी। गौरतलब है कि राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश की सरकारों ने केंद्र सरकार और पेंशन कोष नियामक को अपने कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना लागू करने के फैसले के बारे में सूचित किया है।
क्या कह रहा आरबीआई ?
कुछ समय पहले राष्ट्रीय बैंक ऑफ़ इंडिया ( आरबीआई ) ने एक लेख जारी किया था। जिसमें कहा गया था कि पुरानी पेंशन योजना के मामले में राजकोषीय बोझ नई पेंशन योजना से 4.5 गुना तक अधिक हो सकता है। आरबीआई के इस लेख में चेतावनी दी गई है, ‘राज्यों का पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस ) पर लौटना एक बड़ा कदम होगा जो मध्यम से दीर्घावधि में उनके राजकोषीय दबाव को ‘अस्थिर स्तर’ तक बढ़ा सकता है। साथ ही ओपीएस में वापस जाने वाले राज्यों के लिए तात्कालिक लाभ यह है कि उन्हें वर्तमान कर्मचारियों के राष्ट्रीय पेंशन योजना योगदान पर खर्च नहीं करना पड़ेगा, लेकिन भविष्य में गैर-वित्तपोषित पुरानी पेंशन योजना के उनके वित्त पर ‘गंभीर दबाव’ डालने की आशंका है।’

इस लेख के अनुसार राज्यों के पुरानी पेंशन योजना पर वापस लौटने से वार्षिक पेंशन व्यय में साल 2040 तक सकल घरेलू उत्पाद का सालाना 0.1 प्रतिशत बचाएंगे, लेकिन उसके बाद उन्हें वार्षिक जीडीपी के 0.5 प्रतिशत के बराबर पेंशन पर अधिक खर्च करना होगा। इसमें कहा गया है कि पूर्व में डीबी योजनाओं वाली कई विकसित अर्थव्यवस्थाओं को अपने नागरिकों की बढ़ती जीवन प्रत्याशा के कारण बढ़ते सार्वजनिक व्यय का सामना करना पड़ा है, और बदलते जनसांख्यिकीय परिदृश्य और बढ़ती राजकोषीय लागत ने दुनियाभर में कई अर्थव्यवस्थाओं को अपनी पेंशन योजनाओं की फिर से समीक्षा करने के लिए मजबूर किया है। लेख में कहा गया है कि, राज्यों द्वारा ओपीएस में कोई भी वापसी राजकोषीय रूप से अस्थिर होगी। हालांकि इससे उनके पेंशन व्यय में तत्काल गिरावट हो सकती है।
पुरानी पेंशन योजना से सरकार को क्या समस्या है ?
केंद्र सरकार द्वारा पुरानी पेंशन योजना पुनः लागू किये जाने में एक मुख्य समस्या यह है कि पेंशन की देनदारी अनफंडेड रही। मतलब आय का कोई जरिया नहीं था और भुगतान की राशि में लगातार बढ़ोत्तरी होती जा रही थी। पुरानी पेंशन योजना के तहत भारत सरकार के बजट में हर साल पेंशन के लिए प्रावधान किया जाता है। लेकिन भविष्य में साल दर साल ये भुगतान कैसे किया जाए, इस पर कोई स्पष्ट योजना नहीं थी। वहीं दूसरी ओर पेंशन की देनदारियां बढ़ती जा रही थीं साथ ही हर साल पेंशनर्स को दी जाने वाली सुविधाओं में भी बढ़ोतरी भी हो रही थी। मतलब महंगाई भत्ता, डीए से पेंशन भुगतान की राशि में और भी इजाफा होने लगा था।
आंकड़ों के अनुसार पिछले तीन दशकों में केंद्र और राज्यों के लिए पेंशन देनदारियां कई गुना बढ़ गई। वर्ष 1990-91 में केंद्र का पेंशन बिल 3 हजार 272 करोड़ रुपये था और सभी राज्यों के लिए कुल व्यय 3 हजार 131 करोड़ रुपये था। जो साल 2020-21 तक 58 गुना बढ़कर 1लाख 90 हजार 886 करोड़ रुपये हो गया। राज्यों के लिए यह 125 गुना बढ़कर 3 लाख 86 हजार 1 करोड़ रुपये हो गया।
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