उत्तराखण्ड की दशा और दिशा को जनप्रतिनिधि के नजरिए से जानने का यह पहला प्रयास किया गया है जिसमें व्यक्ति विशेष के बारे में संपूर्ण जानकारी और उनके द्वारा किए गए कार्यों के साथ ही सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक मुद्दों पर उनके विचार जानेंगे। इस कड़ी में पूर्व मुख्यमंत्री
त्रिवेंद्र सिंह रावत की सोच-विचार का पूरा लेखा-जोखा पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत कर रहे हैं। पेश है विशेष संवाददाता कृष्ण कुमार से उनकी बातचीत
उत्तराखण्ड स्थापना के 23 वर्ष बाद राज्य के मूल मुद्दों पर आपका क्या नजरिया है?
पूरा देश ग्लोबल अर्थव्यवस्था पर चल रहा है। हम लोगों को आंमत्रित करते हैं कि हमारे यहां इन्वेस्टमेंट जो भी होगा वह जमीन पर ही होगा। अगर रोजगार, विकास चाहते हैं तो हमको लिबरल होना पड़ेगा। किसी भी इंटिरियर के गांव में रह कर आप दुनिया को देखते हैं तो सोच बदलती है। इससे पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है। जिस तरह हमास से इजराइल लड़ रहा है, रूस-यूक्रेन का युद्ध हो रहा है इससे पूरी दुनिया प्रभावित हुई है। इसका असर हर मसले पर पड़ता है। इसलिए बड़ी सोच रखने की आवश्यकता है। जहां तक मुद्दों की बात है तो मुद्दे तो समय-समय पर उठते रहते हैं। कमियां तो हर किसी में होंगी। अगर व्यापक तौर पर हम देंखे तो इन मुद्दों पर क्या बात हो रही है, कैसे बात की जा रही है यह जरूरी है। मुद्दों पर तो बात होनी ही चाहिए। इसमें राजनीतिक संगठनों के साथ-साथ सामाजिक संगठनों की भी बड़ी भूमिका होती है।
पर्वतीय क्षेत्रों में बाहरी लोगों द्वारा जमीन की खरीद हो रही है। आपने ही स्वयं कहा था कि पहाड़ी क्षेत्र में एक नाली जमीन की खरीद की अनुमति को बदलने की जरूरत है। क्या इस मुद्दे पर बात होनी चाहिए या नहीं?
मैंने एक नाली की बात तो नहीं की लेकिन जब खंडूड़ी जी सीएम थे उस समय एक परिवार को 200 वर्ग मीटर जमीन खरीदने की परमिशन दी गई थी। पहाड़ से पलायन के तीन मुख्य कारण हैं बेरोजगारी, अच्छी शिक्षा और चिकित्सा का अभाव। जिसे रोगजार मिलेगा वह पहाड़ों में ही रहना पसंद करेगा। अब सवाल है कि 200 वर्ग मीटर में कोई क्या रोजगार करेगा। अगर हम पीछे देख्ंों तो सौ डेढ़ सौ साल पहले मसूरी, रानीखेत, नैनीताल में स्कूल खुले थे। वे अच्छे चल रहे हैं। हमको सीलिंग को हटाना ही पड़ेगा नहीं तो पहाड़ के पहाड़ पूरी तरह से खाली हो जाएंगे। आज जो भी पहाड़ में अधिसंख्यक रह रहे हैं वह वही हैं जो संसाधनविहीन है। जिसके पास संसाधन हुआ उसने पहाड़ छोड़ा। इसलिए हमें पहाड़ों में संसाधन देने पडेंगे। कोई शिक्षा के लिए स्कूल खोलना चाहता है, कोई ऐसी इंडस्ट्री खोलना चाहता है जिससे लोगों को रोजगार मिले तो हमें उसके लिए सीलिंग का प्रतिबंध हटाना पड़ेगा।
होम स्टे योजना में सब टैक्स मुक्त है जिसका दुरुपयोग होने लगा है। इस पर भी कोई न कोई ठोस नीति बनाई जाने की आवश्यकता है?
अगर माहौल नहीं होता तो इंवेस्टर राज्य में नहीं आते। वातावरण बना हुआ है तभी तो इंवेस्टर आ रहे हैं। आपको जानकरी होनी चाहिए कि देश का 20 प्रतिशत फार्मा उत्तराखण्ड से ही आता है। आप व्हीकल्स में देखिए, हीरो होंडा, अशोक लेलैंड, टाटा तमाम गाड़ियां यहां बन रही हैं। तमाम रोजमर्रा की वस्तुएं भी प्रदेश में ही मैम्युफैक्चरिंग हो रही है। यहां लॉ एंड आर्डर की व्यवस्था अन्य राज्यों से अच्छी है। तो फिर निवेश का वातावरण क्यों नहीं बन पा रहा है? इसका सबसे बड़ा कारण है कि हमारे प्रदेश में भूमि का नितांत अभाव है। देहरादून में रेड कैटेगरी का उद्योग नहीं लग सकता। गुलाबी कैटेगरी का भी वही उद्योग लग सकता है जिसमें कम से कम डेढ़ सौ से ज्यादा लोग काम करते हों। एक जिला तो आपके पास से चला गया। अब बचा हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर तो दोनों में बहुत सीमित जमीनें हैं।
ऐसा मेरी नजर में नहीं आया है, अगर ऐसा है तो इसे सरकार को देखना चाहिए। होम स्टे योजना का मकसद ही यह रहा है कि अधिकतम लोगों को अवसर मिले। पर्यटन नए-नए स्थानों में आए-जाए और उसे वहां रहने-खाने की बेहतर सुविधा मिले। इसीलिए होम स्टे योजना लागू की गई है। अगर इसमें कुछ कमियां आ रही हैं तो उसे सरकार को देखना और उन्हें दूर करना होगा।
आज प्रदेश में अपना मजबूत भू-कानून होने की मांग हो रही है। आप इस को किस तरह से देखते हैं?
भू-कानून तो पूरे देश में है। सभी राज्यों में भू-कानून है। उत्तराखण्ड के लिए भू-कानून का मॉडल लाओ ना। सिर्फ कह देने से तो नहीं होता कि उत्तराखण्ड का भू-कानून। हिमाचल की तर्ज की बात कर रहे हैं तो हिमाचल जाकर देखना चाहिए।
आपकी सरकार में बनी सूर्यधार झील परियोजना में भ्रष्टाचार के मामले सामने आए हैं। करोड़ों खर्च करने के बावजूद पूरा काम नहीं हुआ है। झील में पानी नहीं भर पा रहा है। क्या निर्माण से पहले इसका परीक्षण नहीं किया गया था?
गलत बोल रहे हैं। तीन बार जांच हुई जिसमें कोई अनियमितता नहीं पाई गई। जो भी यह बोल रहा है वह गलत बोल रहा है। प्रीज्युडिस हो रहा है या आप भी उसके साथ मिले हुए हैं। 2015 में सूर्यधार झील का इस्टीमेट बना था और 2020 में झील बन कर तैयार हुई। उससे भी कम पैसे में झील बनी तो कहां भ्रष्टाचार हुआ। पानी नहीं है तो बारिश के पानी के लिए झील बनती है। कोई भी बांध या झील किसी नदी के पानी से नहीं भरती, उसके लिए बारिश का पानी ही जरूरी होता है। टिहरी बांध में भगीरथी और भिलंगना जो नदियां हैं उनसे टिहरी बांध की झील नहीं भर सकती।
जब खंडूड़ी जी सीएम थे उस समय एक परिवार को 200 वर्ग मीटर जमीन खरीदने की परमिशन दी गई थी। पहाड़ से पलायन के तीन मुख्य कारण हैं बेरोजगारी, अच्छी शिक्षा और चिकित्सा का अभाव। जिसे रोगजार मिलेगा वह पहाड़ो में ही रहना पसंद करेगा। अब सवाल है कि 200 वर्ग मीटर में कोई क्या रोजगार करेगा। अगर हम पीछे देख्ंों तो सौ डेढ़ सौ साल पहले मसूरी, रानीखेत, नैनीताल में स्कूल खुले थे। वे अच्छे चल रहे हैं। हमको सीलिंग को हटाना ही पड़ेगा नहीं तो पहाड़ के पहाड़ पूरी तरह से खाली हो जाएंगे। आज जो भी पहाड़ में अधिसंख्यक रह रहे हैं वह वही हैं जो संसाधनविहीन है जिसके पास संसाधन हुआ उसने पहाड़ छोड़ा। इसलिए हमें पहाड़ों में संसाधन देने पडेंगे। कोई शिक्षा के लिए स्कूल खोलना चाहता है, कोई ऐसी इंडस्ट्री खोलना चाहता है जिससे लोगों को रोजगार मिले तो हमें उसके लिए सीलिंग का प्रतिबंध हटाना पड़ेगा।
अगर सब कुछ सही था तो फिर सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज ने जांच के आदेश क्यों दिए थे?
सिंचाई मंत्री ने ही स्वयं इसकी जांच करवाई है। उनका विभाग था तब क्या करते रहे सिंचाई मंत्री।
उद्यान विभाग में करोड़ों रूपए घोटालों की सीबीआई जांच हो रही है। भाजपा सरकार होने के बावजूद इस तरह के मामले क्यों सामने आ रहे हैं?
दुर्भाग्य है जो किसानों के लिए बनाई गई योजनाओं में इस तरह के मामले हो रहे हैं। अगर हम किसानों की योजनाओं में भी ऐसा कर रहे हैं तो यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है। किसानों को ग्राम देवता कहा गया है इसलिए कम से कम किसानों के साथ बहुत ही संवदेनशील होने की जरूरत है।
इन्वेस्टर समिट में आपके समय में सवा लाख करोड़ रुपए के एमओयू साईन हुए थे। वर्तमान सरकार के समय में भी कई लाख करोड़ के एमओयू साईन हो चुके हैं। लेकिन निवेश धरातल पर नहीं आया। क्या प्रदेश का इंवेस्टर समिट सिर्फ एमओयू समिट नहीं बन रहा है?
जितने भी एमओयू साईन होते हैं उनमें से पूरे कभी नहीं आते। जो एमओयू करता है उसकी कुछ शर्तें होती हैं। अगर आप उनकी शर्तों को मानते हैं तो वह आपके यहां इंनवेस्ट करने के लिए तैेयार है। दूसरी बात यह है कि जो हमने सवा लाख करोड़ के एमओयू साइन करवाए थे उनमें से 40 हजार करोड़ के काम धरातल पर आए हैं। तब कोरोना से पूरी आर्थिक व्यवस्था ध्वस्त हो गई। उत्तराखण्ड में भी इसका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। अगर कोरोना न होता तो और भी इंवेस्टमेंट आ सकता था। यह भी देख लीजिए कि इससे पहले 17 सालों में कितना इंवेस्ट राज्य में आया? तब तमाम सब्सिडियां दी गई थी जबकि आज कोई
सब्सिडी नहीं है।
हमने सवा लाख करोड़ रुपए के एमओयू साइन करवाए थे उनमें से 40 हजार करोड़ के काम धरातल पर आए हैं। तब कोरोना से पूरी आर्थिक व्यवस्था ध्वस्त हो गई। उत्तराखण्ड में भी इसका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। अगर कोरोना न होता तो और भी इंवेस्टमेंट आ सकता था। यह भी देखिए कि इससे पहले 17 सालों में कितना इंवेस्ट राज्य में आया? तब तमाम सब्सिडियां दी गई थी जबकि आज कोई सब्सिडी नहीं है।
आपके समय में ही औद्योगिक विभाग ने निवेश का डाटा कम बताया है। तीन सालों में 7 हजार से भी ज्यादा लघु उद्योगों के बंद होने की बात भी कही है जबकि राज्य में इंवेस्ट के नाम पर इन लघु उद्योगों का भी औद्योगिक विभाग ने अपनी उपलब्धियों में जोड़ा था?
यह तो सब चलता रहा है। कुछ बंद होंगे, कुछ नए लगेंगे। उत्तराखण्ड में भारी उद्योग तो हैं ही नहीं। केवल बीएचईएल ही अकेला भारी उद्योग है बाकी तो लघु उद्योग ही हैं। पहले पहाड़ों में कोई इंवेस्ट नहीं आता था। आज आ रहा है। सोलर पावर योजना को ही देख लीजिए, पहाड़ों में कई योजनाएं सोलर की चल रही हैं।
मौजूदा सरकार कह रही है कि हम इंवेस्टरों के लिए राज्य में माहौल बनाएंगे, उनके लिए नीतियां बनाएंगे जिससे इंवेस्टरों को कोई परेशानी नहीं होगी। आपके कार्यकाल से लेकर आज तक क्या इन छह सालों में इंवेस्ट के लिए माहौल और स्थितियां नहीं बन पाईं हैं?
अगर माहौल नहीं होता तो इंवेस्टर राज्य में नहीं आते। वातावरण बना हुआ है तभी तो इंवेस्टर आ रहे हैं। आपको जानकरी होनी चाहिए कि देश का 20 प्रतिशत फार्मा उत्तराखण्ड से ही आता है। आप व्हीकल्स में देखिए, हीरो होंडा, अशोक लेलैंड, टाटा तमाम गाड़ियां यहां बन रही हैं। तमाम रोजमर्रा की वस्तुएं भी प्रदेश में ही मैम्युफैक्चरिंग हो रही है। यहां लॉ एंड आर्डर की व्यवस्था अन्य राज्यों से अच्छी है। तो फिर निवेश का वातावरण क्यों नहीं बन पा रहा है? इसका सबसे बड़ा कारण है कि हमारे प्रदेश में भूमि का नितांत अभाव है। देहरादून में रेड कैटेगरी का उद्योग नहीं लग सकता। गुलाबी कैटेगरी का भी वही उद्योग लग सकता है जिसमें कम से कम डेढ़ सौ से ज्यादा लोग काम करते हों। एक जिला तो आपके पास से चला गया। अब बचा हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर तो दोनों में बहुत सीमित जमीनें हैं।
राज्य में अफसरशाही के रवैए से निवेशकों की रुचि उत्तराखण्ड में नहीं हो रही है। आपके समय में भी अफसरों की कार्यशैली पर सवाल खडे़ होते थे?
नहीं ये आपका आरोप हो सकता है। राज्य में इतने बड़े पैमाने में उद्योग, कारोबार लगे वह ऐसे ही नहीं लगे हैं इसमें सरकार और शासन का ही सहयोग होता है।
आपको पार्टी में कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई। न तो सगठन में औेर न ही केंद्रीय संगठन में आपको समायोजित किया गया?
बहुत बड़ा पद मिला है। मुख्यमंत्री का पद मिला, राष्ट्रीय मंत्री रह गए, नमामि गंगे के राष्ट्रीय संयोजक रह गए, झारखंड का प्रभारी रह गए, उत्तर प्रदेश के सह प्रभारी रह गए। इसके अलावा तमाम राज्यों में काम कर चुका हूं। तो पद कोई बड़ी चीज नहीं होती, पद हमेशा किसी के साथ नहीं रहता।
आने वाले समय में उत्तराखण्ड के लिए किस विषय पर आपका फोकस रहेगा?
हमारी राजनीति बेसिकली एक सामान्य सामाजिक कार्यकर्ता की रही है। सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर हमें जैसी जरूरत होती है वैसे काम करते हैं। लोगों के बीच में जाते हैं, उनकी समस्याओं को हल करने का काम करते हैं। इसी हिसाब से प्रोग्राम करते हैं। राजनीति में एक बड़ी पहचान है तो कोई राजनीतिक मसलांे पर सलाह मांगता है तो सलाह भी देते हैं।
2015 में सूर्यधार झील का इस्टीमेट बना था और 2020 में झील बन कर तैयार हुई। उससे भी कम पैसे में झील बनी तो कहां भ्रष्टाचार हुआ। पानी नहीं है तो बारिश के पानी के लिए झील बनती है। कोई भी बांध या झील किसी नदी के पानी से नहीं भरती, उसके लिए बारिश का पानी ही जरूरी होता है। टिहरी बांध में भगीरथी और भिलंगना जो नदियां हैं उनसे टिहरी बांध की झील नहीं भर सकती।
हाल ही में आपने सीमा माता सर्किट यात्रा की है। इस यात्रा के बारे में अपने कोई खास अनुभव साझा करेंगे?
जब मैं मुख्यमंत्री था तब मैने इस सर्किट की शुरुआत की थी। कुछ चीजें एक निश्चित स्थान पर ही होती है। जन्म का स्थान एक होता तो मृत्यु का स्थान दूसरा होता है। जब मुझे पौड़ी के फल्सवारी कोट गांव में मुझे सीता माता जी के स्थान की जानकारी मिली तो मैं वहां के लोगों से मिला इस बारे में जो भी गं्रथ थे उनका अध्ययन किया तो मुझे लगा कि हमारे पास एक बहुत ही द्विव्य स्थान है। इस स्थान पर वैदेही जो सीता माता जी को कहा जाता है, भू समाधी ली थी। मुझे पता चला कि वहां सैकड़ों वर्षों से मेला चलता है जो स्थानीय ग्रामीण चलाते हैं। वहां पर बाल्मिकी जी, लक्ष्मण जी और लवकुश जी का भी मंदिर है। फिर पता चला कि उस क्षेत्र की आराध्य कुल देवी सीता माता जी हैं। फिर पता चला कि वहां पर विदा कोटी गावं में साढ़े छह सौ साल पुराना सीता माता जी का मंदिर है। विदा वैदेही का ही अपभ्रंश है जो वैदेही से विदा नाम से प्रचलित हो गया। देव प्रयाग में शंता नदी है जो राजा दशरथ की पुत्री थी। वहां पर राहू चरण पादुका है। वहां पर तमाम सनातन धर्म की मान्यताएं प्रचलित हैं तो मुझे लगा कि हमारे पास एक आध्यात्मिक चेतना का एक स्थल है जो क्षेत्र का धार्मिक और सांस्कृति के अलावा आर्थिक तरक्की दे सकता है। तब हमने इसके लिए काम शुरू किया इसके लिए पैसा दिया एक ट्रष्ट बनाया और वहां के लिए एक भव्य डिजाईन भी तैयार करवाया था जिसकी लगात 40 करोड़ रुपए थी।
मुझे लगा कि यह सीता माता जी का एक परिपथ है जिसको बढ़ाना चाहिए तब मैंने इसे शुरू करवाया। लेकिन तब मैं कई कारणों से नहीं जा पाया। इस बार मेरे पास समय था तो मैंने देवप्रयाग से सीता माता की समाधि स्थल तक पूरे परिपथ की यात्रा में शामिल हुआ। यात्रा हर साल स्थानीय लोग करते हैं लेकिन हमारा यह प्रयास है कि इसको बढ़ावा मिले और ज्यादा से ज्यादा लोग इस परिपथ में शामिल हो।
ब्रह्माखाल में ब्रहमा जी का भी प्राचीन मंदिर है जबकि सभी यह जानते थे कि ब्रह्मााजी का एक मात्र मंदिर पुष्कर तीर्थ में है। ऐसा क्यों हो रहा है क्या राज्य का पर्यटन विभाग इस पर काम नहीं कर रहा है?
अपनी सामाजिक, धार्मिक और अध्यात्म की संस्कृति के प्रति स्वयं जागरूक रहना पड़ेगा। हमारे यहां तो दुर्योधन का भी मंदिर है, चंद्रमा का भी मंदिर है राहू का भी मंदिर है। हनुमान जी का भी मंदिर है। बहुत से देव स्थान हैं। पूरा उत्तराखण्ड ही देवताओं की भूमि है।
आपको प्रदेश की राजनीति में क्या महसूस होता है। भाजपा और उसके संगठन को लेकर क्या कोई बदलाव नजर आता है?
सब बढ़िया है। भारतीय जनता पार्टी का संगठन मजबूती से काम कर रहा है। हल्के-फुल्के परिवर्तन तो होते ही रहते हैं। बदलाव स्वभाविक भी है और जरूरी भी है। अगर किसी भी संस्था में स्थिरता आ जाती है तो उसमें गलन शुरू हो जाती है। नए लोगों को अवसर मिलना चाहिए। अगर नए लोगों को मौका नहीं दिया जाएगा तो पुराने लोग कब तक काम करेंगे। अगर ताजा संगठन रखना है नई ऊर्जा के लिए नए लोगांे को अवसर देना ही होगा।
अगर आपको एक बार फिर प्रदेश का नेतृत्व करने का अवसर मिले तो आप किन विषयों पर काम करना चाहेंगे?
ऐसे काल्पनिक सवालों का कोई जवाब नहीं होता और न मैं ऐसे सवालों का कोई जवाब देता हूं। काम कभी भी पूरे नहीं होते हैं। मैंने अपने कार्यकाल में बहुत सारे काम करवाए, लेकिन हमेशा सारे काम पूरे कहां होते हैं। कुछ न कुछ तो रह ही जाते हैं। डेवलपमेंट कभी भी स्थिर नहीं होता, जब आप एक काम करते हैं तो दूसरा काम आ जाता है। आज से 20 साल पहले 12 फुट की चौड़ी सड़क से काम चलता था तो आज 120 फुट की चौेड़ी सड़क चाहिए। मैं पता नहीं कितने काम नहीं करवा पााया उसे आज क्या गिनाना।
लोकसभा चुनाव होने वाले हैं आप इसमें अपनी क्या भूमिका देखते हैं?
हमारा मकसद है भाजपा को चुनाव में जितवाना। आज भाजपा सरकार में देश को तरक्की मिली है हर मोर्चे पर देश आगे बढ़ रहा है। विश्व पटल पर आज भारत को सम्मान के साथ देखा जा रहा है। इसलिए बहुत जरूरी है कि आने वाले पांच साल के लिए फिर से भारतीय जनता पार्टी की ही सरकार बने उसके लिए हम काम करेंगे।
एक पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश की राजनीति में बड़ी पहचान होने के चलते प्रदेश के ऐसे पांच कौन से मुद्दे हैं जो आपके मन को छूते हों और आपकी काम करने की इच्छा हो?
पहला है महिलाओं को मुख्यधारा में रखना। किसी भी समाज में महिलाओं को आगे रखना और उसे बढ़ाने का मतलब होता है समाज और देश की तरक्की। दूसरा युवा वर्ग है जिसको लेकर ज्यादा फोकस होना चाहिए। आज हर कोई सरकारी नौकरी चहता है जबकि हम युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ कर बेरोजगारी को खत्म कर सकते हैं। तीसरी बात है न्याय व्यवस्था की। आज न्याय व्यवस्था बहुत महंगी हो चुकी है। आम आदमी के लिए न्याय पाना बेहद कठिन हो चुका है। इसमें बड़े बदलाव की जरूरत है। चौथी बात है क्वालिटी एजुकेशन। आज हम स्कूल तो खोल देते हैं, बच्चे पढ़ भी रहे हैं लेकिन क्या उन्हें क्वालिटी शिक्षा दी जा रही है या नहीं, इस पर फोकस होना चाहिए। पंाचवा है पर्यावरण जो कि आज एक नया चैलेंज लेकर सामने आया है। इसके कारण हमारे तमाम उत्पादन प्रभावित हो रहे हैं। आज तमाम महामारियां सामने आ रही हैं। कोरोना जैसी महामारी से तो पूरा विश्व प्रभावित हो चुका है और आज भी पूरी तरह से उभर नहीं पाया है। इसका कारण है कि अब हमें शुद्ध खाना, शुद्ध हवा स्वच्छ, पानी नहीं मिल पा रहे हैं। प्रदूषण बढ़ रहा है। जब पर्यावरण शुद्ध होगा तो हमें हर चीज शुद्ध मिलेगी। पर्यवर्णीय संकट जो आज खड़ा हो गया है उसे सुधारने की बहुत जरूरत है।
त्रिवेंद्र सिंह का सफर
जीवन परिचय: 20 फरवरी 1960 को उत्तराखण्ड के पोैड़ी जिले के गांव खैरासैंण पट्टी मल्ला बदलपुर में जन्म।
शिक्षा: प्राथमिक शिक्षा गांव से। एकेश्वर के राजकीय माध्यमिक विद्यालय से इंटर की शिक्षा। गढ़वाल विश्व विद्यालय से एमए तथा पत्रकारिता में डिप्लोमा इन जर्नलिज्म का कोर्स।
राजनीति यात्रा: 1979 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े। 1981 में संघ के प्रचारक। 1985 में देहरादून महानगर संघ
प्रचारक। 1993 में भारतीय जनता पार्टी के संगठन मंत्री। 1997 से 2002 तक भाजपा के प्रदेश संगठन मंत्री। 2013 में भाजपा के राष्ट्रीय सचिव। 2014 में उत्तर प्रदेश के सह प्रभारी बने। 2014 में ही झारखंड प्रदेश के प्रभारी तथा नमामि गंगे समिति के राष्ट्रीय संयोजक।
जनप्रतिनिधि के रूप में: 2002 एवं 2007 में डोईवाला विधानसभा सीट से विधायक। तत्कालीन बीसी खूडूड़ी तथा रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ सरकार में कृषि, कृषि शिक्षा, कृषि विपणन, दुग्ध विकास, पशुपालन, मत्यस्य पालन, उद्यान एवं फल उद्योग तथा तकनीकी शिक्षा व आपदा प्रबंधन, कैबिनेट मंत्री।
2012 में रायपुर चुनाव में हार। 2014 में डोईवाला सीट पर हार। 2017 में डोईवाला सीट पर जीत हासिल कर राज्य के मुख्यमंत्री बने।
मुख्यमंत्रित्वकाल की उपलब्धियां: जनपद ऊधमसिंह नगर में एनएच 74 के मुआवजे के घोटाले पर कार्यवाही।
25 सितंबर 2018 को अटल आयुष्मान योजना को लागू किया। राज्य के नागरिकों को 5 लाख तक इलाज का सुरक्षा कवच।
गैरसैेंण को प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया, साथ ही गैरसैंण, प्राधिकरण का भी गठन। दस वर्ष के लिए 25 हजार करोड़ गैरसैंण के विकास के लिए घोषित किया। प्रतिवर्ष 25 सौ करोड़ रुपए खर्च किए जाने का प्रावधान किया। देहरादून महानगर को पेयजल और सिंचाई सुविधा के लिए सौंग नदी बांध परियोजना आरंभ। रानीपोखरी क्षेत्र के दर्जनांे गांवों में सिचंाई और पर्यटन के विकास के लिए सूर्यधार बांध झील परियोजना का निर्माण। राज्य के पशुपालकों के लिए चारा बैंक और पहाड़ी क्षेत्र के लिए घसियारी कल्याण योजना आरंभ।
विजन: महिलाओं को मुख्यधारा में रखना। युवा वर्ग जिसको लेकर ज्यादा फोकस होना चाहिए। आज न्याय व्यवस्था बहुत महंगी हो चुकी है। आम आदमी के लिए न्याय पाना बेहद कठिन है। इसमें बड़े बदलाव की जरूरत है। क्वालिटी एजुकेशन। पर्यावरण जो कि आज एक नया चैलेंज लेकर सामने आया है। इसके कारण हमारे तमाम उत्पादन प्रभावित हो रहे हैं। आज तमाम महामारियां सामने आ रही हैं।
भारतीय जनता पार्टी का संगठन मजबूती से काम कर रहा है। हल्के-फुल्के परिवर्तन तो होते ही रहते हैं। बदलाव स्वभाविक भी है और जरूरी भी है। हमारा मकसद है भाजपा को चुनाव में जितवाना। आज भाजपा सरकार में देश को तरक्की मिली है हर मोर्चे पर देश आगे बढ़ रहा है। विश्व पटल पर आज भारत को सम्मान के साथ देखा जा रहा है। इसलिए बहुत जरूरी है कि आने वाले पांच साल के लिए फिर से भारतीय जनता पार्टी की ही सरकार बने उसके लिए हम काम करेंगे।