संतोष सिंह
उच्च हिमालयी बुग्यालों में बढ़ती ठंड के चलते स्थानीय जोशीमठ क्षेत्र के चरवाहे अपनी भेड़-बकरियों के साथ गीष्म कालीन ऊँचे पठारी चुगान क्षेत्रों से नीचे लौटने शुरू हो गए हैं। ऊपरी हिमालयी बुग्यालों और पठारी नीति माणा के धुरों में सीजन की पहली बर्फ बारी के बाद शीत लहर का प्रकोप बढ़ गया है, जिसके चलते पालसियों ने अपनी जीवन पूंजी भेड़ बकरियों को निचली घाटी की ओर रूख कर दिया। आज के आधुनिक युग में भी क्षेत्र के कुछ लोग अपने पुश्तैनी भेड़ पालन व्यवसाय को पकड़े हुए हैं। बारमासी संघर्ष के बाद भी आज यही एकमात्र आजीविका का साधन सीमांत के लोगों का बना हुआ है।
पहाड़ों में चरवाहों का जीवन किसी तपस्या सी कम नहीं होता। अब चरवाहे शेष शीतकाल के लिए तराई भाबर के गर्म इलाकों में रहेंगे और गर्मी आने पर फिर से उच्च हिमालय की ओर रुख करेंगे। बता दें कि अकेले सीमांत जोशीमठ क्षेत्र के करीब 300 परिवारों की आजीविका का मुख्य साधन है भेड़ पालन। माणा घाटी से अपने गाँव भेंटा भर्की के चरवाहों के साथ पहुँचे उर्गम घाटी के समाजसेवी लक्ष्मण सिंह नेगी ने बताया उर्गम घाटी के दर्जनों चरवाहे जो अपने पशुधन भेड़ बकरियों के साथ सतोपंथ माणा मूसापाणी चारागाहों में थे वो अब ठण्ड और बर्फबारी के चलते उन्यानी ताल खिरो घाटी होकर अपने ही गाँव के ऊपरी इलाकों में लौट आये हैं।