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ड्रैगन के ड्रीम प्रोजेक्ट को झटका!

इटली के बीआरआई प्रोजेक्ट से बाहर निकलने के बाद दूसरे देशों द्वारा भी इस पर विचार-विमर्श शुरू हो गया है। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया से साफ है कि इटली के बीआरआई से बाहर निकलना चीन के ड्रीम प्रोजेक्ट को बड़ा झटका माना जा रहा है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा कि बीआरआई वैश्विक प्रभाव वाली एक बेहद सफल परियोजना है। हालांकि उन्होंने इटली का नाम नहीं लिया, लेकिन अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा, ‘चीन ऐसा अपमान कभी बर्दाश्त नहीं करेगा जो बेल्ट एंड रोड सहयोग को नुकसान पहुंचाएगा। चीन इटली जैसे प्रमुख यूरोपीय के साथ व्यापार में कटौती करने का जोखिम नहीं उठा सकता। इसलिए भविष्य में एक अलग स्तर पर और शायद इटली के लिए अधिक लाभप्रद समझौतों की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है

इटली अब आधिकारिक रूप से चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना से बाहर हो गया है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत चीन के साथ इटली का समझौता मार्च 2024 में समाप्त हो रहा है। हाल ही में रोम से बीजिंग को एक पत्र भेजा गया था कि इस परियोजना को नवीनीकृत नहीं किया जाएगा। जिसके बाद चर्चा हो रही है कि क्या इटली के बाहर निकलने से अन्य देश भी इस राह पर आगे बढ़ सकते हैं? क्या शी के ड्रीम प्रोजेक्ट का भविष्य अब अधर में है? ऐसे कई सवालों ने चीन के ड्रीम प्रोजेक्ट को झटका देने का काम किया है। ऐसे में यह जानना बहुत जरूरी है कि आखिर चीन का यह ड्रीम प्रोजेक्ट क्या है।

बीआरआई के तहत निर्माणाधीन’ ‘वन बेल्ट, वन रोड’

‘बीआरआई’ के नाम से मशहूर इस परियोजना को चीन में ‘वन बेल्ट वन रोड’ कहा जाता है। यह परियोजना साल 2013 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा शुरू की गई थी। इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य दूसरे देशों में बुनियादी ढांचे के विकास में बड़े पैमाने पर निवेश करना है। अब तक 150 से अधिक देशों या अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा ‘बीआरआई’ के तहत निवेश किया जा चुका है। इस प्रोजेक्ट का एक उद्देश्य चीनी कंपनियों का मुनाफा भी है। चीन वैश्विक मामलों में नेतृत्वकारी भूमिका हासिल करने के लिए लगातार संघर्ष कर रहा है। इसीलिए बीआरआई की तुलना अमेरिका के ‘मार्शल प्लान’ से की जाती है। मार्शल योजना में पश्चिमी यूरोपीय देशों के लिए अमेरिका का एक राहत सहायता कार्यक्रम चलाया गया था। इसे द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) के बाद 1948 में शुरू किया गया था। राजनीति विशेषज्ञों द्वारा अमेरिकी मार्शल प्लान को अब तक का सबसे प्रभावी अमेरिकी विदेशी सहायता कार्यक्रम माना जाता है। कुछ इसी तरह का चीन का बीआरआई प्रोजेक्ट माना जा सकता है।

 

बीआरआई पर संशय का माहौल
कई यूरोपीय देशों को पहले से ही चीन की मंशा पर शक है। अपने जीवनकाल में राष्ट्रपति बने रहने के लिए संविधान में संशोधन करने वाले शी जिनपिंग का तानाशाही रवैया दुनिया के सामने है। फिर 2019 की शुरुआत में कोरोना महामारी ने चीन को लेकर संदेह का माहौल पैदा कर दिया है। यूक्रेन पर आक्रमण के बाद चीन ने रूस समर्थक रुख अपनाया। चीन का अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर चल रहा है। चीन समय-समय पर ताइवान पर हमले की धमकी देता रहता है। इसकी परिणति श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन का कब्जा बतौर सामने आती है। चीन ने श्रीलंका को कर्ज चुकाने के तौर पर यह बंदरगाह 99 साल की लीज पर दिया। इससे मलेशिया जैसे एशियाई देश सावधान हो गए। यहां तक कि चीन का सदाबहार दोस्त पाकिस्तान भी चीन के कर्ज का बोझ कम करने की इच्छा जता रहा है। अब ऐसे में चीनी निवेशक खुद दूसरे देशों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में लगे 90 अरब डॉलर की भरपाई को लेकर चिंतित हैं।

बीआरआई को लेकर इटली की क्या है भूमिका?
इटली, प्रभावशाली जी-7 देशों के समूह का सदस्य और यूरोप में एक महत्वपूर्ण शक्ति केंद्र, 2019 में बीआरआई पर हस्ताक्षर करने वाला एकमात्र देश था। उस वक्त अमेरिका ने चेतावनी दी थी कि अहम इंफ्रास्ट्रक्चर और टेक्नोलॉजी चीन के हाथ में चली जाएगी। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री ग्यूसेप क्वांटे ने इसे नजरअंदाज कर दिया था। उस समय विपक्ष में रहीं इटली की वर्तमान पीएम मेलोनी ने भी इस समझौते का कड़ा विरोध किया था। ऐसी संभावना थी कि प्रधानमंत्री बनने के बाद वह कोई कड़ा फैसला लेंगी। इस बात का संकेत उन्होंने सबसे पहले दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान दिया था। अनुबंध समाप्त होने में चार महीने बचे हैं, इस बीच चीन को सूचित किया गया है कि अनुबंध का नवीनीकरण नहीं किया जाएगा। मेलोनी ने विश्वास जताया कि इसके बाद भी चीन के साथ व्यापार और आर्थिक कारोबार बढ़ेगा। साथ ही उन्होंने ये भी साफ किया कि बीआरआई से हमारे देश को उम्मीद के मुताबिक फायदा नहीं हुआ है।

क्या कहते हैं इटली-चीन व्यापार आंकड़े?
इटली के अधिकारियों का कहना है कि बीआरआई से चीन को उनकी तुलना में अधिक लाभ हुआ है। इन अधिकारियों ने इस बात को पुख्ता करने के लिए आंकड़े भी पेश किए हैं। पिछले साल की तुलना में इटली का चीन को निर्यात 13 अरब यूरो से बढ़कर 16.4 अरब यूरो पहुंच गया। लेकिन इसी अवधि के दौरान इटली को चीन का निर्यात 31.7 बिलियन यूरो से लगभग दोगुना होकर 57.5 बिलियन यूरो हो गया। फ्रांस और जर्मनी, दो गैर- बीआरआई देशों ने इस अवधि के दौरान इटली की तुलना में चीन को अधिक निर्यात किया। इसलिए इटली ने अब बीआरआई में फंसे बिना चीन के साथ द्विपक्षीय स्तर पर व्यापार करने की नीति की योजना बनाई है। इटली के राष्ट्रपति सर्जियो मैटरेल्ला निकट भविष्य में चीन का दौरा करेंगे वहीं मेलोनी ने भी खुद बीजिंग जाने की इच्छा जताई है।

इटली-चीन व्यापार का भविष्य

इटली का बीआरआई से बाहर निकलने के बाद दूसरे देशों द्वारा भी इस पर विचार विमर्श शुरू हो गया है। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया से साफ है कि इटली के बीआरआई से बाहर होने के बाद चीन परेशान हो गया है। मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा कि बीआरआई वैश्विक प्रभाव वाली एक बेहद सफल परियोजना है। हालांकि उन्होंने इटली का नाम नहीं लिया, लेकिन अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा, ‘चीन ऐसा अपमान कभी बर्दाश्त नहीं करेगा जो बेल्ट एंड रोड सहयोग को नुकसान पहुंचाएगा।’ बेशक, फिर भी चीन इटली जैसे प्रमुख यूरोपीय के साथ व्यापार में कटौती करने का जोखिम नहीं उठा सकता। इसलिए भविष्य में एक अलग स्तर पर और शायद इटली के लिए अधिक लाभप्रद समझौतों की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। इससे पहले नवंबर में ही दक्षिण चीन सागर में फिलीपींस की नाव और चीनी तटरक्षक जहाज में टक्कर के बाद फिलीपींस ने बीआरआई प्रोजेक्ट से अलग होने की घोषणा की थी।

दुनिया को चीन की नीयत पर बिल्कुल भरोसा रहा नहीं है। ऐसे उदाहरण देखे भी गए हैं, जब चीन ने दूसरे देशों को अपने कर्ज के जाल में फंसाया है और फिर उस पर कब्जाने की नीयत से दबाव बनाया है। यही वजह है कि चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से तमाम देश जुड़े तो जरूर, लेकिन उनके मन में चीन को लेकर शंका जरूर बनी रही। अब इटली को दिखा कि चीन के बीआरआई के जवाब में भारत समेत बाकी देश यूरोप तक आर्थिक गलियारा बना रहे हैं तो इटली ने ड्रैगन के बीआरआई से हटने का मन बना लिया है।

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