इजरायल और हमास के मट्टय बीते सप्ताह शुरू हुई जंग में अब तक हजारों लोगों की मौत हो गई है तो वहीं कई लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए हैं। हालात ये हैं कि इजराइल और फिलिस्तीन में लोगों को अपने परिजनों की लाशों को दफनाने तक की जगह नहीं मिल पा रही है और न ही घायलों को उपचार की। इस तबाही से परेशान लोग अपनी जान बचाकर आस-पास के देशों में शरण ले रहे हैं। युद्ध का असर अब वैश्विक अर्थव्यवस्था और राजनीति पर भी नजर आने लगा है जिसको लेकर दुनियाभर के देश भी अलग-अलग गुटों में बंट गए हैं
रूस-यूक्रेन तनाव अभी खत्म भी नहीं हुआ कि दुनिया अब इजरायल पर हमास के हमले से एक और युद्ध की तरफ बढ़ती नजर आ रही है। 7 अक्टूबर, 2023 को फिलिस्तीन के हमास संगठन द्वारा इजरायल पर अचानक 5 हजार रॉकेट एकसाथ दाग दिए गए। जो समय लोगों का सोकर उठने का था उस सुबह की शुरुआत ऐसी हुई कि सैकड़ों लोग कभी नींद से उठ ही नहीं पाए। इजरायल की आम जनता पर हुए रॉकेट हमलों ने पूरे क्षेत्र को कब्रिस्तान में तब्दील कर दिया। हमास का हमला इतना भयंकर था कि इसे सदी का सबसे बड़ा हमला कहा जा रहा है।
इस युद्ध में दोनों पक्षों के अब तक हजारों लोग मारे जा चुके हैं और लाखों लोग बेघर हो गए है। हमास के हमले के बाद इजरायल ने भी युद्ध की घोषणा कर दी है। सात अक्टूबर से लगातार चल रहे इस युद्ध के दौरान इजराइल ने गाजा पट्टी पर अपने नियंत्रण का दावा किया है। इस युद्ध में अब तक दोनों तरफ से लगभग 50 हजार से भी अधिक रॉकेट मिसाइल दागे जा चुके हैं। हालात ये हैं कि इजराइल और फिलिस्तीन में लोगों को अपने परिजनों की लाशों को दफनाने तक की जगह नहीं मिल पा रही है और न ही घायलों को उपचार की। इस तबाही से परेशान लोग अपनी जान बचाकर आस-पास के देशों में शरण ले रहे हैं। युद्ध का असर अब वैश्विक अर्थव्यवस्था और राजनीति पर भी नजर आने लगा है जिसको लेकर दुनियाभर के देश भी अलग- अलग गुटों में बंट गए हैं।
इजरायल पर हमले की वजह
इजरायल-हमास विवाद की असल वजह अल-अक्सा मस्जिद परिसर को बताया जाता है। इजरायल पर हमले के बाद से हमास समूह के लड़ाकों द्वारा इजरायली नागरिकों और सैनिकों को भी बंधक बनाया जा रहा है। हमास के सैन्य कमांडर मोहम्मद दीफ का कहना है कि यह ‘ऑपरेशन अल-अक्सा स्टार्म’ है। यह एक नया ऑपरेशन है, जिसका मकसद संवेदनशील माने जाने वाले अल-अक्सा परिसर को यहूदियों से आजाद कराना है। अल-अक्सा मस्जिद यरूशलम शहर में है। हाल के दिनों में यहूदी लोग अपने पवित्र त्योहार मनाने के लिए यहां आए हैं। इस परिसर में ही टेंपल माउंट है, जहां यहूदी प्रार्थना करते हैं।
यरुशलम का धार्मिक जुड़ाव
यरुशलम दुनिया के अहम विवादित मामलों में से एक है, जिसको लेकर दोनों देशों के बीच शुरू से ही ठनी हुई है। यरुशलम न केवल यहूदी और मुसलमान, बल्कि ईसाइयों के लिए भी धार्मिक रूप से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि तीनों धर्मों का इतिहास यरुशलम से कहीं न कहीं जुड़ा हुआ है। यही कारण है इस विवाद की असल वजह जमीनी नहीं बल्कि धार्मिक है। मुसलमानों के लिए यरुशलम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वहां मुसलामानों की मक्का और मदीना के बाद सबसे बड़ी धार्मिक ईमारत ‘हरम-अल-शरीफ’ (पाक घर) यानी ‘अल-अक्सा मस्जिद’ मौजूद है। मान्यता है कि पैगम्बर मोहम्मद साहब सबसे पहले यरुसलम यानी ‘हरम-अल-शरीफ’ की तरफ रुख करके नमाज पढ़ा करते थे फिर बाद में मक्का की तरफ रुख करके नमाज अदा की जाने लगी।
किताबों और हदीसों के मुताबिक पैगम्बर मोहम्मद साहब अल्लाह से मुलाकात करने के लिए भी यरुशलम में मौजूद एक चट्टान पर जाया करते थे जिसके ऊपर ‘अल-अक्सा मस्जिद’ बनाई गई है। ईसाइयों के लिए ये इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यरुशलम में ‘ईशा मसीह’ को क्रॉस पर चढ़ाया गया और वहीं दफनाया भी गया था। जहां उन्हें दफनाया गया था वहां एक चर्च है जिसे ‘दि चर्च ऑफ हौली सेपल्कर’ कहा जाता है। इसलिए यरुशलम ईसाइयों के लिए भी काफी अहम है। वहीं यहूदियों का मानना है कि उनका धर्म यरूशलम से ही अस्तित्व में आया था। यहूदियों का सबसे पहला मंदिर ‘सोलोमन का मंदिर’ कहा जाता है। यह मंदिर सोलोमन राजा के द्वारा बनाया गया था जिसे रोमन साम्राज्य के द्वारा तोड़ दिया गया। इसकी जगह दोबारा मंदिर बनाया गया जिसे ‘हेर्रोट मंदिर’ कहा गया। इसे हेर्रोट राजा के द्वारा बनाया गया था लेकिन इसे भी रोमन साम्राज्य के द्वारा तोड़ दिया गया। इस मंदिर की एक दीवार को छोड़ दिया गया क्योंकि इस मंदिर की एक दीवार ‘हरम-अल-शरीफ’ यानी ‘अल-अक्सा मस्जिद’ से जुड़ी हुई है। इस दीवार को ‘वेस्टर्स वॉल’ और ‘व्हेलिंग वॉल’ कहा जाता है जो यहूदियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है।
दशकों पुराना इतिहास
इजरायल और फिलिस्तीन के बीच इस संघर्ष की शुरुआत प्रथम विश्व युद्ध के समय हुई थी। ओटोमन (उस्मानी) साम्राज्य की हार के बाद ब्रिटेन ने फिलिस्तीन पर कब्जा कर लिया। वर्ष 1929 में हेब्रोन नरसंहार हुआ जिसमें बहुत सारे यहूदी मारे गए थे। ये दंगा यहूदियों के बसने के खिलाफ हुए फिलिस्तीनी दंगों का एक हिस्सा था। इन दंगों को खत्म करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने ब्रिटेन को फिलिस्तीन में ‘यहूदियों के लिए एक अलग राज्य’ बनाने का सुझाव दिया था।
ब्रिटेन इस मुद्दे पर अमल तक नहीं कर पाया था कि दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हो गया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यहूदियों को अत्यधिक उत्पीड़न और अत्याचारों का सामना करना पड़ा। दूसरा विश्व युद्ध 1945 तक चला और यहूदी युद्ध और अत्याचारों के कारण फिलिस्तीन से पलायन कर गए थे वापस फिलिस्तीन की ओर रुख करने लगे। देखते ही देखते वर्ष 1947 तक फिलिस्तीन में यहूदियों की संख्या और दंगे बढ़ने लगे। फिलिस्तीन में जैसे-जैसे यहूदी बढ़ते गए कई फिलिस्तीनी वहां से विस्थापित होते गए। दूसरे विश्व युद्ध के बाद बने संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1947 में फिलिस्तीन को यहूदी और अरबों के लिए दो अलग-अलग राष्ट्र बनाने का प्रस्ताव पास किया। यहूदी नेतृत्व ने इस पर हामी भरी, लेकिन अरब पक्ष ने इस फैसले को अस्वीकार कर दिया। ब्रिटिश शासन दोनों के बीच संघर्ष खत्म करने में नाकाम रहा और अंततः पीछे हट गया।
इस बीच अचानक यहूदी नेतृत्व ने अलग राष्ट्र इजरायल की स्थापना की घोषणा कर दी। इजराइल की स्थापना के बाद ही कई अरब देशों ने इजरायल पर हमला बोल दिया। इस लड़ाई में फिलिस्तीनी लड़ाकों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, लेकिन इस जंग में यहूदी अरब लोगों पर भारी पड़े। इजरायली सुरक्षाबलों ने 7.5 लाख फिलिस्तीनियों को इलाके से खदेड़ दिया और उन्हें पड़ोसी देशों में शरण लेने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद युद्ध अगले साल तक शांत रहा, इजरायल के यहूदियों ने इसे ‘स्वतंत्रता संग्राम’ कहा, जबकि फिलिस्तीनियों ने इसे ‘द कैटास्ट्रोफे’ या ‘अल-नकबा’ (तबाही)। इस घटना के बाद दोनों देशों ने समझौता करने पर सहमति दिखाई।
ओस्लो समझौता
1993 में हुए ओस्लो समझौते के तहत के गाजा पट्टी क्षेत्र और वेस्ट बैंक को 3 तरह के क्षेत्रों में बांटा गया। जोन ए में ऐसे क्षेत्रों को रखा गया जिस पर फिलिस्तीन का पूरा नियंत्रण था। जोन बी में उन क्षेत्रों को रखा गया, जहां प्रशासन फिलिस्तीन का था लेकिन सुरक्षा इजरायल के हाथ में थी। इसी तरह जोन सी में वो क्षेत्र थे जहां पूर्ण रूप से इजरायल का नियंत्रण था। इस समझौते के बाद कुछ समय तक दोनों देशों के बीच शांति बनी रही, इस बीच दूसरी तरफ मुस्लिम कट्टरपंथियों ने 1987 में एक संगठन की शुरुआत कर दी, जिसका नाम ‘हमास’ यानी हरकतुल मुकावमतुल इस्लामिया या इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन। ये फिलिस्तीनी सुन्नी मुसलमानों का एक सशस्त्र संगठन है। विश्व इसको एक आतंकी संगठन मानता है।
कैसे हुआ हमास का गठन
हमास का गठन मिस्र और फिलिस्तीन ने मिलकर किया था, जिसका उद्देश्य उस क्षेत्र में इजरायली प्रशासन के स्थान पर इस्लामिक शासन की स्थापना करना था। फिलिस्तीन में ‘हमास’ अपनी जड़ें जमा रहा था और उधर बातचीत के जरिए फिलिस्तीन और इजरायल के रिश्ते सामान्य होने लगे थे। सामान्य होते रिश्तों के साथ 1995 में इजरायल ने फिलिस्तीनियों को कब्जा की गई जमीनें लौटाना शुरू कर दिया। इसके बाद वर्ष 1995 में इत्तेफाक से यहूदियों का त्योहार पुरिम और मुसलमानों का रमजान एक ही दिन आ गया था। बाजारों में लगी भीड़ देख एक यहूदी कट्टरपंथी ने मुसलमानों की भीड़ पर फायरिंग कर दी। इसके जवाब में हमास के आतंकियों ने यहूदियों पर आत्मघाती हमले करने शुरू कर दिए। इस हमले में दोनों पक्षों का काफी नुकसान हुआ।
ओस्लो-2 समझौता
बढ़ती आतंकी घटनाओं को सुलझाने के लिए एक बार फिर वर्ष 1995 में ओस्लो-2 समझौता किया गया। इस समझौते में जोन बी से दोनों पक्षों के क्षेत्रों को अलग-अलग कर दिया गया। वेस्ट बैंक से फिलिस्तीन के हिस्से में कई प्रमुख शहर आए जिसमें हेब्रोन, यत्ता, बेतलहम, रमल्ला, कल्कइलियाह, तुलकार्म, जैनीन, नाबुलुस। इसके अलावा गाजा पट्टी के शहर भी फिलिस्तीन को मिले जिसमें रफाह, खान यूनुस, डायरल, अलबलह, जबलियाह, अन नजलाह शामिल हैं। इस समझौते के बाद ऐसा लगने लगा था कि इजरायल और फिलिस्तीन का विवाद अब खत्म हो गया है। लेकिन दोनों पक्षों के कट्टरपंथियों को ये समझौता भी मंजूर नहीं था।
दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच बातचीत और शांति स्थापित करने, जमीन लौटाने और अच्छे रिश्ते कायम करने की वजह से गुस्साए यहूदी कट्टरपंथियों ने 4 नवंबर 1995 को इजराइल के प्रधानमंत्री यिजक रॉबिन की हत्या कर दी, जिसके बाद दोनों देशों के बीच शांति भंग हो गई। जब वर्ष 1996 में बेंजामिन नेतन्याहू पहली बार इजरायल के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने न केवल सख्त रुख अपनाया, बल्कि ‘सेक्युरिटी विद पीस’ का नारा देते हुए ओस्लो समझौते को मानने से इनकार कर दिया। इधर हमास ने फिलिस्तीन की राजनीति पर धीरे-धीरे कब्जा कर लिया था। हमास के आतंकी मुस्लिम भाईचारे के नाम पर फंड इकट्ठा करते, और उसका इस्तेमाल इजराइल के खिलाफ करते रहे। आत्मघाती हमलों से शुरू हुआ हमास का आतंकी सफर अब रॉकेट अटैक तक पहुंच गया है। जिसकी ताजा झलक हम खबरों में देख रहे हैं।
मोसाद को खबर तक न लगी
मोसाद को इजरायल और विश्व की सबसे जबरदस्त इंटेलिजेंस एजेंसी कहा जाता है। लेकिन फिर भी हमास ने इतने बड़े हमले को अंजाम दे दिया और मोसाद को भनक तक नहीं लगी। जिसके चलते अब उसके काम करने के तरीके पर ही सवाल उठ रहे हैं। हजारों रॉकेटों का एक साथ फायर किया जाना, हमास के आतंकियों का किसी ट्रेंड फौजियों की तरह पैरा ड्रॉप होना, ये बगैर किसी ट्रेनिंग के मुमकिन नहीं है। सवाल है कि अगर हमास इस स्तर की तैयारी कर रहा था तो दुनिया की सबसे बेहतरीन खुफिया एजेंसी मोसाद क्या कर रही थी?
दो पक्षों में बंटा विश्व
ईरान और यमन ने ‘हमास’ के हमले का खुले तौर पर समर्थन किया है। वहीं दूसरी ओर भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, जापान जैसे देश इजरायल के समर्थन में हैं। यूरोपियन यूनियन ने भी कहा कि इजरायल को अपनी संप्रभुता की रक्षा का अधिकार है। संयुक्त राष्ट्र, सऊदी अरब, ब्राजील और चीन ने दोनों पक्षों से शांति की अपील की है। दक्षिण अफ्रीका और रूस ने तत्काल युद्ध विराम का आह्नान किया है। तुर्की ने भी दोनों पक्षों से तनाव कम करने की अपील की है।

