यह कहानी है एक ऐसी महिला की जो बार-बार ठगी गई। कभी पहले पति ने उसके चरित्र पर लांछन लगाकर घर से निकाला तो कभी दूसरे पति जो पेशे से प्रोफेसर है ने उससे शादी कर उसको अपने पहले बच्चे की पालनहार बना डाला। लेकिन जब उसने मातृसुख की कल्पना की तो यह उसका सपना बनकर रह गया। क्योंकि प्रोफेसर पति नहीं चाहता था कि वह मां बने। प्रसव पीड़ा से गुजरने से पहले ही महिला का जबरन धोखे से गर्भपात कराकर उसे मानसिक और शारीरिक पीड़ा दे दी गई। इस पीड़ा के प्रतिकार में महिला ने आरोपी पति और हॉस्पिटल के खिलाफ मामला दर्ज कराने की ठानी तो इसकी एवज में उसे सौतेले नाबालिग बेटे के लैंगिग शोषण में फंसा दिया गया। वह भी बिना कोई मेडिकल जांच हुए ही। आखिर मामला न्यायालय में पंहुचा। जहां हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली के साथ ही विद्वान अधिवक्ता संदीप कश्मीरा और अंशुल लोशाली के तर्क और तथ्यों के आगे महिला पर लगाए गए सभी आरोप निराधार साबित हुए। आखिर एक अबला को न्याय तो मिला लेकिन अभी भी कई सवाल अनुत्तरित हैं
आज तक आपने पुरुषों पर पॉक्सो एक्ट के तहत मुकदमे दर्ज होते देखा और सुना होगा लेकिन यह पहला मामला है जब उत्तराखण्ड में किसी महिला पर पॉक्सो अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा दर्ज हुआ है। इससे भी हैरतनाक यह है कि महिला पर जिस नाबालिग बच्चे के साथ लैंगिक शोषण के आरोप लगे हैं वह रिश्ते में उसका सौतेला बेटा लगता है। महिला का कसूर सिर्फ यह था कि वह पूर्व में दांपत्य जीवन के कड़वे अनुभवों से गुजर चुकी थी, जिससे आजिज हो उसने ताउम्र अकेला रहना स्वीकार किया था लेकिन बाद में वह पेशे से एक ऐसे प्रोफेसर के संपर्क में आई जिसने उसे दूसरा दांपत्य जीवन जीने का मधुर सपना दिखाया। यह सपना उसके लिए तब खुशी लेकर आया जब उसकी कोख में एक नई जिंदगी ने प्रवेश किया। हालांकि महिला के लिए यह जितना सुखद था उसके पति को यह उतना ही नागवार लगा। कारण था वह प्रोफेसर उस अभागन को सिर्फ अपनी पहली पत्नी के बच्चे का पालनहार तक सीमित रखना चाहता था। फलस्वरूप महिला के साथ ज्यादती शुरू होने का सिलसिला शुरू हुआ। इसके तहत सबसे पहला वार उसकी कोख पर हुआ। कहते हैं कि महिला की कोख हरी होना उसके लिए सबसे बड़ा सुख माना जाता है। एक मां बनकर बच्चे का लालन-पालन और वात्सल्य जीवन में बच्चे की लीला देखना हर मां का सपना होता है। महिला के इस सपने को तब झटका लगा जब चेकअप के बहाने धोखे से हल्द्वानी के एक हॉस्पिटल में उसका गर्भपात करा दिया गया।

इस कहानी में ट्विस्ट तब आया जब महिला ने उस हॉस्पिटल के खिलाफ मामला दर्ज कराने की ठान ली जिसमें उसका गर्भपात किया गया था। यही वजह महिला के लिए दुखदाई बन गई। महिला अपने साथ हुए अन्याय की बाबत चौकी से लेकर थाने तक दर-दर भटकती रही लेकिन किसी ने भी उसकी पुकार नहीं सुनी। इससे पहले की महिला धोखे में रख जबरन गर्भपात का मामला दर्ज होता उसके पति ने ही उस पर गंभीर आरोप लगा डाले। प्रोफेसर पति ने उस महिला पर अपने नाबालिग बेटे के साथ लैंगिक शोषण के आरोप लगाए। यही नहीं बल्कि पति ने महिला के खिलाफ यौन शोषण के गंभीर आरोप लगाकर पॉक्सो एक्ट के तहत कोतवाली हल्द्वानी में मुकदमा दर्ज करवा दिया। यह मामला कोरोनाकाल में दर्ज कराया गया था। लेकिन इस दौरान महिला पर आरोप लगाने वाले नाबालिग बच्चे की मेडिकल जांच तक नहीं कराई गई। नैनीताल जिले की पॉक्सो अदालत ने बेटे के शोषण के मामले में आरोपित सौतेली मां को बाइज्जत बरी कर दिया है। यह राज्य में पहली बार ऐसा मामला सामने आया है जिसमें पॉक्सो आरोपी महिला को गिरफ्तार किए बिना ही जमानत मंजूर हुई, बल्कि उसे दोषमुक्त करार दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले इसका आधार बने हैं।
गौरतलब है कि हल्द्वानी के एमबीपीजी कॉलेज के एक तत्कालीन एसोसिएट प्रोफेसर ने दिसंबर 2019 में हल्द्वानी की एक तलाकशुदा महिला के साथ दूसरी शादी की थी। प्रोफेसर का पहली शादी से 12 साल का बेटा था। फरवरी 2020 में महिला गर्भवती हो गई तो प्रोफेसर ने गर्भपात कराने के लिए न केवल जोर-जबरदस्ती की, बल्कि धोखे से चेकअप कराने के बहाने एक निजी चिकित्सालय में ले जाकर उसका गर्भपात करा दिया। इसे लेकर दोनों के बीच अक्सर झगड़ा होने लगा। इस दौरान पीड़िता चौकी से लेकर थाने तक दर-दर भटकती रही लेकिन उसकी रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई गई। आरोप है कि करीब ढ़ाई माह तक महिला को कमरे में बंद कर रखा गया और उसे शारीरिक यातनाएं दी गईं। एक दिन पड़ोसियों की मदद से महिला भागकर अपनी दीदी के घर पहुंच गई और उत्पीड़न से आहत होकर मानवाधिकार आयोग एवं राष्ट्रीय महिला आयोग को पत्र लिखा। इस दौरान एक बार फिर महिला ने अपने साथ हुई ज्यादतियों की बाबत मुकदमा दर्ज कराने के लिए खूब मशक्कत की लेकिन उसकी पुकार अनसुनी कर दी गई। इसी बीच प्रोफेसर ने पत्नी के खिलाफ तहरीर दी कि वह 12 साल के उसके सौतेले बेटे का लैंगिक शोषण कर रही है, जिस पर हल्द्वानी कोतवाली पुलिस ने पॉक्सो अधिनियम के साथ ही धारा-504, 506 के तहत केस दर्ज कर लिया।
इस मामले में गिरफ्तारी पर रोक लगाने के लिए महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की तो कोर्ट ने गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। इसी बीच पुलिस ने इस मामले में महिला के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी। बचाव पक्ष के अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली ने अदालत को बताया कि आरोपित महिला का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। जिस घटना के बहाने उस पर आरोप लगाए गए हैं, वह झूठी व मनगढ़ंत है। वहीं, आरोपित महिला का कहना था कि वह गर्भवती थी तो पति ने जबरन गर्भपात करा दिया। परेशान होकर उसने पति के खिलाफ परिवार न्यायालय में प्रार्थना-पत्र दिया तो बदला लेने की मंशा से उसके खिलाफ झूठा केस दर्ज करा दिया गया। 28 जुलाई 2023 को सबूतों और तथ्यों को ध्यान में रखते हुए नैनीताल हाईकोर्ट के विशेष न्यायाधीश पॉक्सो व अपर सत्र न्यायाधीश नंदन सिंह की बेंच ने महिला को बेकसूर मानते हुए बाइज्जत बरी कर दिया।
इस मामले में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है। अगर कहीं नियम कानून के विपरीत कार्य हुआ है तो इसकी जांच कराई जाएगी।
प्रहलाद नारायण मीणा, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक नैनीताल
हॉस्पिटल मालिक को बचा रही पुलिस
प्रदेश में भ्रूण लिंग परीक्षण रोकने के लिए धामी सरकार सख्त है। इसके चलते पूर्व में ही लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम तक बनाया जा चुका है। जिसमें राज्य एवं जिला स्तरीय समितियों की तर्ज पर अब ब्लॉक स्तर पर भी समितियों का गठन किया जा चुका है। भ्रूण लिंग परीक्षण रोकने के लिए सभी पंजीकृत अल्ट्रासाउंड केंद्रों के बाहर सीसीटीवी कैमरा एवं बायोमीट्रिक मशीनें भी लगाई गई हैं। यही नहीं बल्कि चिकित्सक के परामर्श के बिना मेडिकल स्टोर पर गर्भपात संबंधी दवाओं की बिक्री तक नहीं की जा सकती है। इसी के साथ प्रदेश के सभी 95 विकासखंडों में ब्लॉक निरीक्षण एवं मूल्यांकन समिति का गठन किया गया है। इसमें उपजिलाधिकारी, ब्लाक प्रमुख, खंड विकास अधिकारी, प्रभारी चिकित्साधिकारी तथा संबंधित क्षेत्र के एनजीओ के एक सदस्य को भी शामिल किया गया है।
इस समिति को ब्लॉक के अंतर्गत पंजीकृत अल्ट्रासाउंड केंद्रों के निरीक्षण का अधिकार है। इसके अलावा भ्रूण लिंग परीक्षण करने वालों के खिलाफ कार्यवाही संबंधी डीके पॉलिसी को शीघ्र लागू करने तथा लिंग परीक्षण की सूचना देने वाले को पुरस्कृत करने का निर्णय भी लिया जा चुका है। बावजूद इसके प्रदेश में धड़ल्ले से भ्रूण परीक्षण और गर्भपात हो रहे हैं जिसका उदाहरण है यह प्रकरण जिसमें पीड़ित महिला का भ्रूण परीक्षण के नाम पर गर्भपात कराया गया है। भुक्तभोगी महिला की मानंे तो हल्द्वानी में उसके साथ तीन बार भ्रूण परीक्षण के नाम पर गर्भपात करने की कोशिश की गई। सबसे पहले डॉ सोमा पंत के यहां ले जाया गया। उन्होंने भ्रूण परीक्षण किया और कहा कि बच्चा ठीक है घर ले जाओ। इसके बाद डॉ मधु किरण के वहां ले जाया गया जहां महिला द्वारा विरोध करने पर गर्भपात नहीं किया जा सका। तीसरी बार पीलीकोठी स्थित अनुर्जन हॉस्पिटल में डॉ अपराजिता रावल को दिखाया गया तो बेहोशी की दवा खिलाकर धोखे से पीड़िता का गर्भपात कर दिया गया। एक तरफ जहां सरकार अवैध भ्रूण परीक्षण और गर्भपात पर सख्त है, वहीं दूसरी तरफ पीड़िता के धोखे से कराए गए गर्भपात पर पुलिस ने खामोशी तान ली है। पीड़िता का कहना है कि जब वह हॉस्पिटल के खिलाफ मामला दर्ज कराने की कोशिशों में जुटी थी तो पुलिस आरोपी हॉस्पिटल मालिक को बचाने में लगी थी। गर्भपात करने वाले हॉस्पिटल मालिक को बचाने के लिए ही पुलिस ने बिना कोई देर किए उसके खिलाफ पॉक्सो एक्ट में मामला दर्ज कर लिया।