भाजपा ने तीन राज्यों में बिल्कुल नए चेहरों को मुख्यमंत्री बना दिया। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के नए मुख्यमंत्रियों की उम्र 60 साल से कम है। इस तरह भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने सिर्फ पुराने नेताओं को किनारे करके किसी के चुनौती के तौर पर उभरने की संभावना को खत्म कर दिया तो नई लीडरशिप भी तैयार कर दी। इससे पार्टी का कार्यकर्ताओं और दूसरी, तीसरी कतार के नेताओं को यह संदेश गया है कि किसी समय उनकी भी लॉटरी खुल सकती है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या कांग्रेस इससे कोई सबक लेगी? क्या कांग्रेस पार्टी के पुराने नेताओं को हटा कर उनकी जगह नया नेता नियुक्त करेगी? राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस की मुश्किल यह है कि उसके पास नए नेता बहुत कम बचे हैं। राहुल गांधी ने एक प्रयोग के तौर पर 2009 में जो नए चेहरे आगे किए थे उनमें से ज्यादातर भाजपा के साथ चले गए हैं। जो बचे हैं उनमें से कुछ ही लोग कांग्रेस के साथ सक्रिय हैं। कांग्रेस उनको आगे कर सकती है लेकिन पुराने नेताओं से नेतृत्व छीनना बहुत आसान नहीं होगा। इसका कारण यह है कि कांग्रेस का आलाकमान भाजपा हाईकमान जितना ताकतवर नहीं है। भाजपा में नरेंद्र मोदी और अमित शाह चुनाव जिता रहे हैं तो पार्टी के नेता उनके हर आदेश का पालन करते हैं। तीसरी बात यह है कि भाजपा के पीछे आरएसएस की ताकत है, जिसके बिना भाजपा नेताओं की कोई हैसियत नहीं होती है। यही कारण है कि भाजपा से अलग हुआ कोई नेता सफल नहीं हुआ, जबकि कांग्रेस से अलग होकर सारे बड़े नेता फल-फूल रहे हैं। चौथी बात यह है कि कांग्रेस पार्टी के पास संसाधनों की कमी है जबकि नेता भी अमीर हैं। इसके उलट भाजपा संसाधनों के लिए नेताओं पर निर्भर नहीं है। तभी कांग्रेस के लिए भाजपा जैसा प्रयोग करना मुश्किल है। फिर भी पार्टी कुछ तो सबक ले ही सकती है। लेकिन उसमें भी मुश्किल यह है कि पार्टी बदलाव में जितनी देरी करेगी बदलाव उतना मुश्किल होता जाएगा।
भाजपा के प्रयोगों से सबक लेगी कांग्रेस?

