देहरादून स्थित सचिववालय इन दिनों गंभीर प्रकरणों की फाइलों के गायब होने के मामले में चर्चाओं के केंद्र में है। फाइलों के रहस्यमय परिस्थितियों में गायब होने का पता ही नहीं चल पाता, अगर सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी न ली जाती। गायब फाइलें करोड़ों के घोटालों की हैं। ऐसे में सचिवालय की पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। चर्चा है कि सचिवालय में एक ऐसा गैंग सक्रिय है जो फाइलों की सेंधमारी कर घोटालों में संलिप्त आरोपियों को बचाने की कोशिश कर रहा है
प्रदेश का सबसे सुरक्षित और मजबूत तंत्र सचिवालय को माना जाता है जहां से पूरे प्रदेश का सिस्टम संचालित होता है। देखा जाए तो प्रदेश की राजनीति और सरकार भी सचिवालय के गलियारों से होकर ही संचालित होती रही है। इसी पूरे सिस्टम के भीतर सरकारी फाइलें गायब होने के चौंकाने वाले मामले सामने आ रहे हैं। चाहे वह 20 करोड़ के बीज प्रमाणिक घोटाले का मामला हो या गृह अनुभाग से शस्त्र लाइसेंस के विस्तार की फाइलें गायब होना। सबसे गंभीर बात तो यह है कि फाइलों के गायब होने का खुलासा सूचना के अधिकार कानून के तहत हो रहा है जो कि अपने आप में बेहद चौंकाने वाली बात है। सिस्टम को यह मालूम ही नहीं है कि उसी नाक के नीचे कौन फाइले गायब कर रहा है और कब- कब फाइलें गायब हुई हैं इससे प्रदेश के समूचे सिस्टम की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हाने लगे हैं।
दरअसल, फाइल के गायब होने का मामला तराई बीज विकास निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार के खुलासे से जुड़ा हुआ है। वर्ष 2015-16 में प्रदेश के किसानों की फसल के लिए तराई बीज विकास निगम द्वारा दूसरे राज्यों को भेजे गए लगभग साढ़े आठ मीट्रिक टन बीज के सैंपलों को कर्मचारियों द्वारा फेल दिखा दिया गया था। फेल बताए गए इन बीजां में से प्रति डेढ कुंतल बीजां में से आधा कुंतल बीज यानी 50 किलोग्राम बीज को देने के लिए टीडीसी द्वारा योजना बनाई गई लेकिन किसानों को देने के नाम पर लिए गए बीजों को वितरकों की सहायता से आटा मिलो को बेच दिया गया। इस मामले में लगभग 20 करोड़ का घोटाला किए जाने की बात समाने आई थी।
वर्ष 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के समय में इस मामले का खुलासा हुआ तो तत्कालीन अपर सचिव कृषि आशीष श्रीवास्तव द्वारा इसकी जांच की गई। इस जांच में उन्होंने बीजों की बिक्री और टैग मामलों में घोर अनियमिता पाई गई है। वर्ष 2018 जनवरी को इस मामले की विस्तृत जांच कुमाऊं मंडलायुक्त को सौंपी गई। 18 मार्च 2018 को मंडलायुक्त ने अपनी विस्तृत जांच में अनियमिताओं को सही पाया और अपनी रिपोर्ट में यह भी लिखा कि इस मामले की विभागीय और अभिलेखीय जांच पर्याप्त नहीं है इसलिए किसी सक्षम एजेंसी या एसआईटी से इसकी जांच करवाने की सिफारिश भी उन्होंने अपनी रिपोर्ट में की। मंडलायुक्त की जांच रिपोर्ट आने के बाद मामला शासन में लटक गया और एसआईटी द्वारा जांच करवाने की शिफारिश को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। हालांकि इस मामले में दिसंबर 2018 को शासन ने मंडलायुक्त की जांच रिपोर्ट पर कार्यवाही करते हुए बीज प्रमाणिक अभिकरण संस्था के निदेशक गौरी शंकर आर्य जो कि कृषि निदेशक के पद पर भी तैनात थे, को हटा दिया गया।
अब इस मामले में किस तरह से घोटाले के दोषियों को बचाए जाने का खेल रचा गया इसकी भी कहानी खासी दिलचस्प है। टीडीसी के बीज प्रमाणिक अभिकरण के तत्कालीन निदेशक गौरी श्ांकर आर्य को निदेशक के पद से तो हटा दिया गया लेकिन कृषि विभाग में उनका निदेशक का पद बरकरार रहा। इस घोटाले की फाइल पर विभागीय कार्यवाही एसआईटी के मद्देनजर तत्कालीन अपर सचिव कृषि रामविलास यादव के कार्यालय भेजी गई जहां दो वर्ष तक यह फाइल दबी रही। गौर करने वाली बात यह हे कि रामविलास यादव स्वयं आय से अधिक संपति और भ्रष्टाचार के मामले में जेल में है लेकिन उनके कार्यालय से इस मामले की फाइल ही गायब हो चुकी है।
मामले की मूल पत्रावली के गायब होने की जानकारी न तो शासन को है और न ही यह ज्ञात है कि उक्त फाइल कहां है। इसका खुलासा भी सूचना के अधिकार के तहत उस समय सामने आया जब प्रयागराज के माधवापुर बहरंना के हरिशंकर पांडे द्वारा 6 जून 2022 को मूल पत्रावली को मांगा गया लेकिन उनको मूल पत्रावली नहीं मिल पाई। इसके बाद ही इस मूल पत्रावली को खोजने का काम शासन स्तर पर आरंभ हुआ। इसके लिए लोक सूचना अधिकारी द्वारा आवेदक हरिशंकर पांडे द्वारा 3 अगस्त 2022 को प्रथम अपील दायर की गई लेकिन उनको तब सूचना तो नहीं दी गई बशर्ते यह सूचित किया गया कि पत्रावली 14 अक्टूबर 2020 को अपर सचिव कृषि रामविलास यादव के कार्यालय को भेजी गई थी। इसके बाद हरिशंकर पांडे ने सूचना आयोग में अपील दाखिल की जिसमें सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने सुनवाई की।
सुनवाई में आयुक्त योगेश भट्ट द्वारा कई बिंदुओं पर नाराजगी जताते हुए अपने आदेश में टिप्पणी की है कि सूचना के अधिकार के तहत यह ज्ञात हो चुका था कि पत्रावली गायब है बावजूद इसके इस मामले में कोई कार्यवाही नहीं की गई। यह भी आश्चर्यजनक है कि जिस पत्रावली पर शासन द्वारा एसआईटी की जांच करवाए जाने का निर्णय लेना था वही पत्रावली गायब है और आज जब फाइल की खोज की जा रही है तब पता चल रहा है कि वह उक्त अधिकारी के कार्यालय से गायब है जो कि आय से अधिक संपति के मामले में जेल में है।
सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने अपनी टिप्पणी में यह भी लिखा है कि ‘सचिवालय से इस तरह महत्वपूर्ण पत्रावलियां का शासन से निर्णय होने से पहले ही गायब हो जाना अच्छा संकेत नहीं है। प्रश्नगत प्रकरण इस तरह का अपवाद स्वरूप इकलौता प्रकरण होगा यह कहना भी मुश्किल है। प्रश्नगत प्रकरण से यह स्पष्ट है कि सचिवालय में फाइलों के मूवमेंट और रखरखाब की जवाबदेही की व्यवस्था नहीं है। व्यवस्था में कहीं न कहीं निरंकुशता व्याप्त है।’
सूचना आयुक्त योगेश भट्ट की यह टिप्पणी साफ करती है कि सचिवालय की समूची व्यवस्था में ही बड़ा घालमेल चल रहा है। अगर सूचना के अधिकार के तहत उक्त पत्रावली को आवेदक हरिशंकर पांडे द्वारा नहीं मांगा जाता तो पता नहीं कितने समय तक इस मामले पर पर्दा ही पड़ा रहता। जबकि उक्त पत्रावली 20 करोड़ के घोटाले और भ्रष्टाचार के मामले की फाइल है जिसमें दो विभागीय और मंडलायुक्त स्तर तक जांच हो चुकी है और शासन को इस मामले में एसआईटी की जांच करने का निर्णय लेना था। यह भी गौर करने वाली बात है कि पूर्व कृषि अपर सचिव रामविलास यादव जो कि जेल में बंद है के कार्यालय से फाइल का गायब होना यह भी साबित करता है कि भले ही रामविलास यादव जेल में बंद हैं, लेकिन उनके हाथो में अभी भी कइयों को बचाने की ताकत बरकरार है।
सूचना आयुक्त योगेश भट्ट द्वारा बीज प्रमाणिक मामले की मूल पत्रावली के गायब होने के मामले में सुनवाई के दौरान अपने निर्णय में लिखा था कि ‘प्रश्नगत प्रकरण इस तरह का अपवाद स्वरूप इकलौता प्रकरण होगा यह कहना भी मुश्किल है।’ कृषि विभाग के साथ ही गृह विभाग के अनुभाग दो से शस्त्र लाइसेंस विस्तार की 2004 की चोरी होना यही साबित करता है। इस फाइल चोरी मामले में अनुभाग अधिकारी शेर अली द्वारा कोतवाली देहरादून में मुकदमा दर्ज करवाया गया है।
वर्ष 2004 में किरण पाल सिंह नाम के व्यक्ति द्वारा अपने शस्त्र लाइसेंस के सीमा विस्तार के लिए आवेदन किया था। लेकिन उनके आवेदन पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। आखिरकार किरण पाल द्वारा सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी तो अनुभाग दो से उनको जबाब दिया गया कि ऐसी कोई फाइल अनुभाग दो में धारित नहीं है। गौरतलब है कि तब यह कार्य गृह अनुभाग एक में होता था लेकिन 2008 में सीमा विस्तार का कार्य अनुभाग एक से हटाकर अनुभाग दो को आवंटन कर दिया गया और समस्त पत्रावलियां अनुभाग दो को सौंप दी गई थी। साफ है कि किरण पाल सिंह के शस्त्र लाइसेंस की पत्रावली भी सचिवालय के गृह अनुभाग दो से गायब हो चुकी है या चोरी हो चुकी है। इस मामले में भी पत्रावली को खोजे जाने का काम किया गया लेकिन जब पत्रावली नहीं मिली तो आखिर में गृह सचिव द्वारा मुकदमा दर्ज करवाए जाने के आदेश दिए गए। जिस पर गृह कोतवाली देहरादून में चोरी का मुकदमा दर्ज करवाया गया।
दिलचस्प बात यह है कि इस मामले में भी अगर सूचना का अधिकार कानून का उपयोग नहीं किया जाता तो गृह विभाग जैसे अतिमहत्वपूर्ण विभाग के अनुभाग का मामला भी वर्षों तक सामने नहीं आता। 2008 से लेकर 2023 तक 15 वर्ष तक उक्त पत्रावली कहां है और किसके पास है यह गृह विभाग आज तक पता नहीं कर पाया। इससे यह भी साफ हो जाता है कि स्वयं सचिवालाय में चोर सेंध लगाने में इतने सक्षम है कि गृह विभाग से भी पत्रावलियां को चोरी कर सकते हैं।
वह पत्रावली हमारे अनुभाग दो से नहीं अनुभाग एक से गायब हुई है। हमारे उच्चाधिकारी जैसे आदेश देते हैं। हम वैसे कार्य करते हैं। मुझे आदेश मिला कि मैं इस मामले में पुलिस में मुकदमा दर्ज करवाउं तो मैंने एफआईआर दर्ज करवा दी। 2008 में शस्त्र सीमा विस्तार का कार्य अनुभाग दो को आवंटित किया गया था। इससे पहले अनुभाग एक में यह कार्य होता था। अगर फाइल गायब हुई है या चोरी हुई है तो अनुभाग एक से ही हुई होगी। हमारे अनुभाग से कोई फाइल गायब नहीं हुई है।
शेर अली, अनुभाग अधिकारी गृह, अनुभाग दो
सचिवालय से इस तरह महत्वपूर्ण पत्रावलियां का शासन से निर्णय होने से पहले ही गायब हो जाना अच्छा संकेत नहीं है। प्रश्नगत प्रकरण इस तरह का अपवाद स्वरूप इकलौता प्रकरण होगा यह कहना भी मुश्किल है। प्रश्नगत प्रकरण से यह स्पष्ट है कि सचिवालय में फाइलों के मूवमेंट और रखरखाव की जवाबदेही की व्यवस्था नहीं है। व्यवस्था में कहीं न कहीं निरंकुशता व्याप्त है।
योगेश भट्ट, सूचना आयुक्त, उत्तराखण्ड

